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परम पूज्य डॉक्टर श्री By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद सेशांति भाग-२किस बात की चिंता सर्वप्रथम धन नहीं है, कम है, नहीं है | ऐसा तो कोई व्यक्ति नहीं, कम है मानो संतोष नहीं है इससे, तो इस बात की चिंता । परमेश्वर ने कृपा करी अब बहुत आ गया है तो उसे संभालने की चिंता, इसको कैसे रखें इस बात की चिंता, इसको कोई छीन के ना ले जाए, क्योंकि बेईमानी से कमाया है, अत्याचार से कमाया है, अन्याय से कमाया है | इस बात का भय भी साथ ही साथ आ जाता है | कहा ना आपकी सेवा में जहां चिंता होती है वहां भय भी साथ ही साथ होता है | दोनों ही साथ साथ चलते हैं | संतान नहीं है इस बात की चिंता, अधिक हो गई है तो इस बात की चिंता | अनेक कारण है भक्तजनों चिंताओं के जो हमने अपने आप को लगाए हुए हैं | एक कारण यश मान की चाह की चिंता, परमात्मा बचाए इससे ।धन की चिंता का तो कुछ हो सकता है लेकिन यश मान की प्राप्ति की चिंता है इससे तो कभी भूख मिटती ही नहीं | इससे तो कभी तृप्ति होती ही नहीं | मारा मारा व्यक्ति फिरता है इसके लिए | अब यश मान प्राप्त हो गया है, तो मेरे से अधिक यश मान किसी और को ना प्राप्त हो जाए, इस बात की चिंता | इसलिए दूसरों को नीचा कैसे दिखाया जाए, इनके यश मान को धूमिल कैसे किया जाए, इस बात की चिंता | आदमी अपने आप को महिला है या पुरुष इन्हीं चिंताओं के घेरे में, अपने आप को घेरे रखता है | यह तो हो गई वह बातें जिनका कोई कारण है | रोग लग गया इस बात की चिंता ठीक होऊंगा के नहीं होऊंगा | कहीं मर तो नहीं जाऊंगा | मर जाऊंगा तो वहां जाकर क्या मुंह दिखाना है, इस बात की चिंता, इस बात का भय | कितने कारण है चिंताओं के? अंत नहीं है इन कारणों का | भक्तजनों एक और कारण है चिंता का मैं समझता हूं जो अति बदकिस्मत हैं उनको यह कारण मिलता है | क्या कारण है ? बिन कारण की चिंता | यह क्या है ? मेरे बाद क्या होगा ? इस बात की चिंता आदमी लगाकर रखता है, मेरे बाद क्या होगा ? इतनी दुनिया चली गई है संसार तो वैसे ही चल रहा है, कोई इसका कुछ नहीं कर सका, इसको कुछ नहीं होता |एक सेठ थे । इतने बड़े सेठ एक दिन बुढ़ापा आया हुआ था ।अपने मुनीमो को बुलाकर कहा मेरे पास कितनी पूंजी है इसका हिसाब किताब लगा के मुझे दिखाइएगा | मुनीमो ने कहा महाराज एक दिन में तो हो नहीं सकता | बहुत से मुनीम है हिसाब किताब करने वाले, लेकिन आपके पास संपत्ति भी बहुत है, इसलिए महाराज एक सप्ताह का समय दीजिएगा, तो एक सप्ताह में हम सब हिसाब किताब करके आपकी सेवा में प्रस्तुत कर देंगे | ठीक बात है हिसाब किताब करके एक मुनीम ने जा कर कहा, सेठ जी चार पीढ़ी तक जितनी संतान अभी आपकी है इतनी ही संतान आगे होती रहे, चार पीढ़ी तक जिंदगी भर वह जो आ रही संतान है, आगामी संतान है कुछ ना कमाए तो भी उनका गुजारा अब वैसे ही चलेगा ऐशो-आराम बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा आपको मिल रहा है | सेठ कहते हैं पांचवी पीढ़ी का क्या होगा? पांचवी पीढ़ी का क्या होगा ? दिन-रात यह धुंन लग गई है आप जैसे कहते हो ना अमुक व्यक्ति को वहम हो गया है, उस व्यक्ति को, सेठ को वहम हो गया । पांचवी पीढ़ी का क्या होगा ? इसको संतों महात्माओं यह कहोगे अकारण चिंता | नौकरी छूट जाएगी तो क्या होगा ? प्रमोशन नहीं होगी तो क्या होगा ? अकारण चिंता, कोई इनका मतलब नहीं है ।भक्तजनों चिंता का कारण कुछ भी है | एक बात तो आप मानोगे ना आजकल ईर्ष्या का सम्राज्य है सब जगह पर, घर में प्रवेश करिए एक भाई दूसरे भाई से ईर्ष्यालु है | एक पुत्री दूसरी पुत्री से ईर्ष्यालु है | ननंद भाभी के प्रति ईर्ष्यालु है | सास बहू के प्रति ईर्ष्यालु है | पुराना साधक छोटे साधक के प्रति ईर्ष्यालु है | छोटा साधक आगे बढ़ रहा है हम वहीं के वहीं हैं । इस बात की ईर्ष्या चल रही है | संतों महात्माओं में भी ईर्ष्या है | इसके अधिक शिष्य हो गए हैं, मेरे अभी कम हैं इस बात की ईर्ष्या भी वहां चल रही है | इसलिए भाग दौड़ धूप लगी रहती है । दूरदराज तक, मानो जिस प्रकार चिंता का साम्राज्य है, चिंता के बिना कोई व्यक्ति नहीं है, ठीक इसी प्रकार से यूं कहिएगा ईर्ष्या के अतिरिक्त कोई नहीं, है ना बेटा ! ईर्ष्या भी सब जगह है| एक देश दूसरे देश के प्रति ईर्ष्यालु है | इसी कारण तो झंझट खड़े हुए हैं यही तो कारण है हमारी चिंताओं का, यही तो कारण है हमारी व्याकुलता का, यही तो कारण है हमारे शारीरिक एवं मानसिक रोगों का | यह ईर्ष्या का रोग बचपन से ही आरंभ हो जाता है | आप अपनी लड़की को कम प्यार देकर देखिएगा पुत्र को ज्यादा दीजिएगा वह लड़की आप का जीना हराम कर देगी | ईर्ष्या के कारण | भक्तजनों होना तो यूं चाहिए हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो दूसरों को छोटा बना के नहीं आगे बढ़ना चाहते हो तो पुरुषार्थ करो, मेहनत करो, विवेक अपना प्रयोग करो और आगे बढ़ो तब तो मजा हुआ | तब तो परमेश्वर के घर में आपका मान-सम्मान है और यदि दूसरे को नीचा दिखाने में लग गए हुए हो तो मानो अपनी शक्तियां व्यर्थ गवा रहे हो | और यदि साधक हो तो अपनी साधना का स्तर नष्ट कर रहे हो | खत्म हो जाएगी वह साधना, किसी काम की नहीं रहेगी | क्यों सारी साधना इन्हीं कामों में लगी हुई है अमुक व्यक्ति को नीचा कैसे दिखाना है, सेवा के क्षेत्र में लोग उतरते हैं । मैं साधकों की बात कर रहा हूं, नेताओं की नहीं, सेवा के लिए सब साधक ही बैठे हुए हैं । राम नाम जपने वाले या कल को जपना शुरु करने वाले बैठे हुए हैं |सेवा के क्षेत्र में लोग उतरते हैं इसके पीछे उद्देश्य क्या है ? इसके पीछे उद्देश्य क्या यह है कि मुझे परमात्मा को प्रसन्न करना है। परमात्मा को जो प्यारे हैं उनकी सेवा सुश्रुषा करनी है या ध्यान दें भक्तजनों बहुत कम अंतर है ‌ दोनों में एक मोक्ष की दाता है और दूसरा भाव यदि यह है और क्षेत्रों में तो मैं आगे बढ़ नहीं पाया चलो इसी क्षेत्र में थोड़े आगे बढ़ते हैं । यश मान की प्राप्ति हो जाएगी । मानो आपने सारी जिंदगी की, की कराई सेवा पर पानी फेर दिया है । ऐसे लोग जो यश मान के लिए सेवा के क्षेत्र में उतरते हैं, इसलिए जो दूसरे सेवा करने वाले है यह नहीं चाहते कि वह मुंह ऊपर उठाएं, वह नहीं चाहते कि इनका सिर ऊपर उठे, इसलिए छोटे होते हुए भी यह अपने बड़ों का, अपमान कर देते हैं | क्यों, नहीं चाहते वह कहीं आगे बढ़ जाए | इसलिए, क्रोधित वाणी बोलेंगे, कठोर वाणी बोलेंगे इत्यादि इत्यादि | मानो अपना बड़प्पन सिद्ध करने के लिए, सेवा इसलिए नहीं की जाती | भक्तजनों सेवा तो इसलिए की जाती है नम्र होने के लिए, सेवक बनने के लिए । सेवा इसलिए नहीं कि आप और एरोगेंट हो जाओ और कठोर हो जाओ | मानो सेवा का आपको अभिमान हो जाए सेवा इसलिए नहीं की जाती, सेवक कहलाने के लिए सेवा नहीं की जाती | इसलिए भक्तजनों चिंता के जो अनेक कारण है हमारे जीवन में अशांति जो है चिंता के रूप में अभिव्यक्त होती है, व्याकुलता के रूप में अभिव्यक्त होती है | मुख्य कारण क्या हो सकता है अशांति का ? यूं कहा जाए स्वामी जी महाराज को किसी ने प्रश्न पूछा महाराज इस संसार में सबसे बड़ी भ्रांति क्या है ? स्वामी जी महाराज ने फरमाया भाई! जो चीज हमारे भीतर है उसको व्यक्ति बाहर लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके बाहर मारा-मारा ढूंढ रहा है इससे बढ़कर और भ्रांति क्या हो सकती है | आप ढूंढते हो उन जगहों पर जहां अशांति के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं तो वहां शांति कैसे मिल जाएगी ? वह भीतर बैठी हुई है और आप ढूंढ रहे हो पैसे में, आप ढूंढ रहे हो विषयों में, आप ढूंढ रहे हो धन संपत्ति में, आप ढूंढ रहे हो संतान में, आप ढूंढ रहे हो ऐशो-आराम में, आप ढूंढ रहे हो यश मान में तो वहां तो शांति है ही नहीं । तो काम करो आप अशांति वाले और ढूंढना चाहो शांति तो यह कैसे संभव हो सकेगा यह संभव नहीं है | एक अबोध बच्चा मेरे जैसा इस अशांति का कारण कहे तो आप शांति के स्रोत से हट गए हो इसलिए अशांति हो गई है| आपको बिजली चाहिए तो आपको बिजली के स्रोत के साथ अपने आप को कनेक्ट करना पड़ेगा । मैं ठीक कह रहा हूं | आपको ठंडा जल चाहिए तो आपको जो ठंडे जल का चश्मा है वहां जाना पड़ेगा, ठंडे जल का कुआं है वहां जाना पड़ेगा | आपको यदि गर्म जल चाहिए तो गर्म जल का जो चश्मा है वहां जाना पड़ेगा | चाहते हो शांति पर अपने आप को जोड़ रखा है और अशांति के साथ तो यह कैसे बात बनेगी ? इसलिए भक्तजनों दास गुरुजनों की ओर से यही निवेदन आपकी सेवा में करने के लिए यहां आया है अपने आप को शांति के स्रोत से जोड़िएगा | शांति तो आप चाहते हो इसमें कोई संदेह नहीं है क्यों सब कुछ होने के बावजूद भी चिंता बनी हुई है तो मानो आप संतुष्ट तो नहीं हो । आपको कुछ और चाहिए और वह चाहिए जिसे शांति कहा जाता है, कहां से मिलेगी शांति के स्रोत के साथ जुड़ने से, कैसे जुड़ना है शांति के स्रोत के साथ | संत महात्मा कहते हैं इस युग में सुगमतम साधन है परमेश्वर के साथ जो शांति का धाम है सुख का स्रोत है उसके साथ जुड़ने का सुगमतम साधन है उसे उसके नाम से याद कीजिएगा | आपको शिव नाम पसंद है आप शिव नाम उच्चारण कीजिएगा |,

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राम कृपा गुरु कृपा ऐसे गुरु को बल बल जाइये ;आप मुक्त मोहे तारे !गुरुबाणीसाधकजनों जो स्वयं प्रकाशमान हो वही दूसरो को प्रकाशित कर सकता है !जो स्वयं ही प्रकाशित ही नही वह भला दूसरो का क्या अंधकार दूर करेगा ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अतः गुरु काफी सोच समझकर धारण करना चाहिये !पर हमारे अहोभाग्यस्वामी जी महाराजश्री प्रेम जी महाराजश्री विश्वामित्र जी महाराजजैसे सुगढ़ संत हमे गुरु रूप में सुलभ हुए !इनका हृदय से बारम्बार धन्यवाद !धन्यवादराम राम,

*🌹🌹🌹🙏*आनंदित रहने की कला ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म में समय लगाए । राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है?राजा ने कहा, "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।गुरु ने पूछा, "अब तुम क्या करोगे ?राजा बोला, "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए।गुरु ने कहा, "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।राजा बोला, "फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा ।गुरु ने कहा, "अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है ।क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ?राजा बोला, "कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ।गुरु ने कहा, "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहनाएक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था।अब तो दोनों ही काम हो रहे थे ।जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था।अब उसे कोई चिंता नहीं थी।*इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ?कुछ भी तो नहीं! राज्य वही, राजा वही, काम वही; दृष्टीकोण बदल गया।**इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टीकोण बदलें।मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, "मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ" अब ईश्वर ही जाने।और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । फिर ही आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे।आपने देखा भी होगा की नौकरों को कोई चिंता नहीं होती मालिक का चाहे फायदा हो या नुकसान वो मस्त रहते है।*,

हे पिंजरे की ये मैनाहे पिंजरे की ये मैना, भजन कर ले राम का,भजन कर ले राम का, भजन कर ले श्याम का॥टेर॥राम नाम अनमोल रतन है, राम राम तूँ कहना,भवसागर से पार होवे तो, नाम हरिका लेना॥१॥भाई-बन्धु कुटुम्ब कबीलो, कोई किसी को है ना,मतलब का सब खेल जगत् में, नहीं किसी को रहना॥२॥कोड़ी-कोड़ी माया जोड़ी, कभी किसी को देई ना,सब सम्पत्ति तेरी यहीं रहेगी, नहीं कछु लेना-देना॥३॥

हे पिंजरे की ये मैना हे पिंजरे की ये मैना, भजन कर ले राम का, भजन कर ले राम का, भजन कर ले श्याम का॥टेर॥ राम नाम अनमोल रतन है, राम राम तूँ कहना, भवसागर से पार होवे तो, नाम हरिका लेना॥१॥ भाई-बन्धु कुटुम्ब कबीलो, कोई किसी को है ना, मतलब का सब खेल जगत् में, नहीं किसी को रहना॥२॥ कोड़ी-कोड़ी माया जोड़ी, कभी किसी को देई ना, सब सम्पत्ति तेरी यहीं रहेगी, नहीं कछु लेना-देना॥३॥