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नववर्ष की पूर्व संध्या पर 💐दिव्य अनुभूतियाँ 💐 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भाग १नव वर्ष की पूर्व सन्ध्या पर गुरूजनों की बहती कृपास्वरूप फिर से उन्होंने झोली में यह प्रसाद डाला । आप सभी की सेवा में उनकी अद्भुत लीलाएँ समर्पित हैं । कैसे तत्व रूप में गुरूजन संग हैं तथा जीवन के कष्टमय पलों को कष्टमय नहीं रहने देते व परलोक भी सुधारते हैं, इसकी बहुत ही सुंदर व अद्भुत अनुभूतियाँ । १) उत्तर भारत के महानगर में एक साधिका जिनके पारिवारिक जीवन में उथल पुथल चल रही थी और उस के कारण जाप ध्यान उचाट हो रखा था । मन नहीं लग पा रहा था। उन्होंने अपने वरिष्ठ साधकों व संगी साधकों में इस बात की चर्चा की। सह साधकों ने प्रार्थना भी अवश्य की होगी। अगली रात्री उनको स्वप्न आया कि एक अद्भुत सी बस है। उसमें साधक गण बैठे हैं व परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री बस चला रहे हैं । वह बस उनके घर के आगे रुकी व दरवाज़ा खुला। उन्होंने पूज्य महाराज से पूछा - महाराज यह सब कहाँ जा रहे हैं ? महाराज बोले यह मेरे धाम जा रहे हैं । वे बोलीं- महाराज मुझे भी जाना है।महाराज बोले- बस में तो जगह नहीं है! वे बोली- महाराज ,मैं श्री चरणों में बैठ जाऊँगी , मुझे भी ले चलिए। महाराज ने कहा -ठीक है । तू नहीं मानेगी।बैठ जा।फिर वह बस आगे किसी और साधिका के घर रुकी और वे भी बैठी, पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के चरणों में । अब वे साधिका फिर से बोली- महाराज , अपना चेहरा तो दिखा दीजिए! पूज्य महाराज बोले- नहीं देख पाओगे । ऐसा कह वे मुड़े और अनन्त प्रकाश ही प्रकाश दिखा ।वे साधिका स्वप्न से रात्री २ बजे उठ गई। साथ ही उनके पति भी जागे और बोले- यहाँ इतना प्रकाश कैसा? मैंने अभी देखा ! वे खिड्की की ओर गए , बाहर देखा पर गहन अंधेरे के सिवाय कुछ न था !! इस अद्भुत स्वप्न के उपरान्त उन साधिका की पारिवारिक समस्याओं को शांति मिलीं । सदगुरू महाराज की लीला अतुलनीय, अवरणनीय ! २) पच्चिम भारत के महानगर से, एक महिला के रिश्ते में एक साधिका ने सवा करोड़ का संकल्प ले रखा था। उस महिला का मन ही मन बहुत लगाव था उन साधिका से। किन्तु अचानक साधिका में अद्भुत परिवर्तन देख वे बहुत हैरान थीं और जान नहीं पा रहीं थी कि यह बदलाव कैसे व किस कारण हुआ । पारिवारिक समस्याओं हेतु बिना दीक्षा ही उन्होंने सवा करोड़ संकल्प ले लिया। जैसे जप बढ़ा , दैव संयोग से उनकी संगति सत्संगियों से हुई । अब मन में दीक्षा लेने का भाव उठा। किन्तु ससुराल में सब बहुत ही ख़िलाफ़ थे । पर उनकी तड़प व उत्कण्ठा कम न हुई । दैव कृपा से अचानक एक दिन एक सत्संगी से बात करते पता चला कि पास ही के शहर में खुला सत्संग लग रहा है। दीक्षा भी होगी । अब उनके रिश्ते में जो साधिका थीं , उनके परिवार का माहौल भी बहुत तंग । उन सत्संगी ने जब उनसे कहा कि उस महिला को दीक्षा दिलवा आओ तो तुम्हारा भी सत्संग में जाना हो पाएगा.. मन में लहर जागी किन्तु पारिवारिक माहौल के कारण, यही कहा कि नहीं बन पाएगा। कोई नहीं जाने देगा। पर फिर भी यही कहा कि यदि गुरूजन चाहें तो कोई नहीं रोक सकता! उन्होंने टिकटें बुक करवादीं । जब घर में बात की तो दोनों परिवारों ने बिना चूँ चां किए स्वीकृति दे दी !!! वे दोनों खुला सत्संग लगा कर आईं । अद्धभुत आनन्द,अविरल प्रेमाश्रु ,समाधिस्थ स्थिति व पूर्ण पवित्रीकरण का आभास हुआ । जिन महिला ने दीक्षा ली , उनको दीक्षा उपरान्त ऐसा महसूस हुआ , कि जैसे वे ज़मीन पर ही नहीं चल रहीं !!! महाराजश्री को दीक्षा देते लगा कि यह सब मैं पहले भी सुन चुकी हूँ ! संसार की आसक्ति की गाँठें कम हुई तथा गुरूजनों के प्रति प्रेम और गहरा व बढ़ा । गुरूजनों की आश्चर्यजनक कृपा बंद नहीं हुईं ! उन्हें महसूस होता है कि वे उनकी सुनते हैं ! वे सब सोच कर कृत कृत हो जाती हैं ।जय जय राम !,

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