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प्रकाशित ******* जय भारत ! ••••••• --महाकवि रामचन्द्र जायसवाल सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् , सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,भारत देश बने ऐसा ही, आज प्रार्थना यही परम ; सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् , सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् .कला - भारती सदा पूजती यह भारत रंगीन, श्रद्धा-सुमन समर्पित इसको, दीपक नित्य नवीन. संस्कृति औ' साहित्य यहाँ छू देंगे शुभ्र चरम; सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम्.चाह रहे हम प्राण - प्राण में जीवन का संगीत, अंग - अंग में तन - तरंग के नटवर - नृत्य पुनीत.जलते जग के अंगारों को शीतल कर दे मन-पूनम ; सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् . 2 यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...भारत देश सभी का सच्चा सहारा.रोटी, लंगोटी, घर और दवाएँ,देश की मिट्टी से ही सभी आयें. देश ने ही जनता - जीवन सँवारा ,यह देश हमारा, यह देश तुम्हारा...देश नहीं तो, हम - तुम नहीं हैं , देश जहाँ है, हम - तुम वहीं हैं .जान से ज्यादा यह देश दुलारा , यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...देश दिया है, हम - तुम हैं बाती ,जिससे यह दुनिया रोशनी है पाती .स्नेह भरो इस दीपक में सारा , यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...इसके लिये ही जीना जहाँ में , इसके लिये ही मरना जहाँ में .देश पर सब कुछ वीरों ने वारा , यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...एकता भारत की जाने न पाये , फिर से गुलामी वापस न आये .हरदम लगाते रहो य' नारा--यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा... 3 भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!मातृभूमि के तभी कहाओगे तुम लोग सपूत रे!दिल कमजोर अगर होगा तो हारोगे तुम हर क्षण हिम्मत, नहीं कर्म कुछ कर पाओगे, कोसोगे बस अपनी किस्मत।कहाँ बचा पायेगा तुमको फिर कोई अवधूत रे!भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!जिसका दिल ही होगा रोगी, दुर्बल होंगे सारे अंग, असफलता हर पल पाकर निज जीवन में वह होगा तंग।कहीं नहीं सम्मान मिलेगा वह तो निरा अछूत रे!भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!तुम हो कौन ? समूचा निज तन, सब अंगों का एक समूह, इसी तरह हर प्रांत मिलाकर बना हिन्द नामक यह व्यूह।इसका प्रहरी बनने की तुममें ताकत अकूत रे!भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर प्रांतवाद से तोड़ो नाता, राज्य-केन्द्र को सबल बनाओ, सबला होंगी भारतमाता।तभी विदेशों में गरजेंगे भारत के सब दूत रे!भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे !● सर्वाधिकार सुरक्षित,

प्रकाशित 
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                      जय 
                      भारत !
                      •••••••

            --महाकवि रामचन्द्र जायसवाल 

सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् , सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,
भारत देश बने ऐसा ही, आज प्रार्थना यही परम ; 
सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् , सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् .

कला - भारती सदा पूजती यह भारत रंगीन, 
श्रद्धा-सुमन समर्पित इसको, दीपक नित्य नवीन. 

संस्कृति औ' साहित्य यहाँ छू देंगे शुभ्र चरम; 
सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम्.

चाह रहे हम प्राण - प्राण में जीवन का संगीत, 
अंग - अंग में तन - तरंग के नटवर - नृत्य पुनीत.

जलते जग के अंगारों को शीतल कर दे मन-पूनम ; 
सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् ,सत्यम् - शिवम् - सुन्दरम् .

                        2
   

  
यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...
भारत देश सभी का सच्चा सहारा.

रोटी, लंगोटी, घर और दवाएँ,
देश की मिट्टी से ही सभी आयें. 

देश ने ही जनता - जीवन सँवारा ,
यह देश हमारा, यह देश तुम्हारा...

देश नहीं तो, हम - तुम नहीं हैं , 
देश जहाँ है, हम - तुम वहीं हैं .

जान से ज्यादा यह देश दुलारा , 
यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...

देश दिया है, हम - तुम हैं बाती ,
जिससे यह दुनिया रोशनी है पाती .

स्नेह भरो इस दीपक में सारा , 
यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...

इसके लिये ही जीना जहाँ में , 
इसके लिये ही मरना जहाँ में .

देश पर सब कुछ वीरों ने वारा , 
यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...

एकता भारत की जाने न पाये , 
फिर से गुलामी वापस न आये .

हरदम लगाते रहो य' नारा--
यह देश हमारा,यह देश तुम्हारा...

                       3
 

भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!
मातृभूमि के तभी कहाओगे तुम लोग सपूत रे!

दिल कमजोर अगर होगा तो हारोगे तुम हर क्षण हिम्मत, 
नहीं कर्म कुछ कर पाओगे, कोसोगे बस अपनी किस्मत।

कहाँ बचा पायेगा तुमको फिर कोई अवधूत रे!
भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!

जिसका दिल ही होगा रोगी, दुर्बल होंगे सारे अंग, 
असफलता हर पल पाकर निज जीवन में वह होगा तंग।

कहीं नहीं सम्मान मिलेगा वह तो निरा अछूत रे!
भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!

तुम हो कौन ? समूचा निज तन, सब अंगों का एक समूह, 
इसी तरह हर प्रांत मिलाकर बना हिन्द नामक यह व्यूह।

इसका प्रहरी बनने की तुममें ताकत अकूत रे!
भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!

क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर प्रांतवाद से तोड़ो नाता, 
राज्य-केन्द्र को सबल बनाओ, सबला होंगी भारतमाता।

तभी विदेशों में गरजेंगे भारत के सब दूत रे!
भारत का दिल है यह दिल्ली, इसे करो मजबूत रे!

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राम कृपा गुरु कृपा ऐसे गुरु को बल बल जाइये ;आप मुक्त मोहे तारे !गुरुबाणीसाधकजनों जो स्वयं प्रकाशमान हो वही दूसरो को प्रकाशित कर सकता है !जो स्वयं ही प्रकाशित ही नही वह भला दूसरो का क्या अंधकार दूर करेगा ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अतः गुरु काफी सोच समझकर धारण करना चाहिये !पर हमारे अहोभाग्यस्वामी जी महाराजश्री प्रेम जी महाराजश्री विश्वामित्र जी महाराजजैसे सुगढ़ संत हमे गुरु रूप में सुलभ हुए !इनका हृदय से बारम्बार धन्यवाद !धन्यवादराम राम,

*🌹🌹🌹🙏*आनंदित रहने की कला ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म में समय लगाए । राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है?राजा ने कहा, "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।गुरु ने पूछा, "अब तुम क्या करोगे ?राजा बोला, "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए।गुरु ने कहा, "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।राजा बोला, "फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा ।गुरु ने कहा, "अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है ।क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ?राजा बोला, "कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ।गुरु ने कहा, "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहनाएक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था।अब तो दोनों ही काम हो रहे थे ।जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था।अब उसे कोई चिंता नहीं थी।*इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ?कुछ भी तो नहीं! राज्य वही, राजा वही, काम वही; दृष्टीकोण बदल गया।**इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टीकोण बदलें।मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, "मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ" अब ईश्वर ही जाने।और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । फिर ही आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे।आपने देखा भी होगा की नौकरों को कोई चिंता नहीं होती मालिक का चाहे फायदा हो या नुकसान वो मस्त रहते है।*,

हे पिंजरे की ये मैनाहे पिंजरे की ये मैना, भजन कर ले राम का,भजन कर ले राम का, भजन कर ले श्याम का॥टेर॥राम नाम अनमोल रतन है, राम राम तूँ कहना,भवसागर से पार होवे तो, नाम हरिका लेना॥१॥भाई-बन्धु कुटुम्ब कबीलो, कोई किसी को है ना,मतलब का सब खेल जगत् में, नहीं किसी को रहना॥२॥कोड़ी-कोड़ी माया जोड़ी, कभी किसी को देई ना,सब सम्पत्ति तेरी यहीं रहेगी, नहीं कछु लेना-देना॥३॥

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