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*बनना है बाप समान*
मीठे बच्चों अब आई तुम्हारी वानप्रस्थ अवस्था
कर लो वाणी से परे अब घर जाने की व्यवस्था
केवल मेरी याद में रहकर अपना समय बिताना
मेरी श्रीमत अपनाकर खुद को कर्मातीत बनाना
नजरें देती बड़ा धोखा इसकी पूरी संभाल करना
भाई भाई की दृष्टि का सदा तुम अभ्यास करना
भोर से पहले उठकर अपने आप से बात करना
आत्माभिमानी बनकर मुझ बाप को याद करना
याद रखो मेरे लाडलों तुम सब हो आत्मा बिंदी
तुम जैसा ही रूप है मेरा मैं भी हूँ आत्मा बिंदी
धारण करो हे मेरे बच्चों एक जन्म तुम पवित्रता
झूठ त्यागकर अपना लो जीवन में तुम सत्यता
पवित्रता के पथ पर बच्चों विघ्न बड़े ही आएँगे
मन मोहने वाले आकर्षण श्रीमत से भटकाएंगे
बच्चों मेरे डरना नहीं पावन तुम सदा बने रहना
पवित्रता के गहने से जीवन सदा सजाए रखना
वाणी से परे होकर करते ही जाना मुझको याद
योगाग्नि से ही निकलेगी सर्व विकारों की खाद
ठान लो अपने दिल में अब मुझको घर जाना है
गर्भजेल को त्यागकर मुझे गर्भमहल में आना है
जग है सारा तमोप्रधान माया खींचे अपनी ओर
बचना है माया से तो थामे रखो श्रीमत की डोर
अशुद्ध और व्यर्थ वाइब्रेशन चारों और है व्याप्त
शुद्ध और समर्थ संकल्पों से इनको करो समाप्त
खुद को पावन बनाकर ही सुख पाओगे अपार
मास्टर प्यार के सागर बनकर देना सबको प्यार
मिटा देना इस दुनिया से माया के आंधी तूफ़ान
कल्याणकारी कर्मों से बन जाओगे बाप समान
*ॐ शांति*🔮🔮🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥🔮🔮
🍎🍎|| "सब कर्मों का फल है" || 🍎🍎
एक स्त्री थी जिसे 20साल तक संतान नहीं हुई।कर्म संजोग से 20वर्ष के बाद वो गर्भवती हुई और उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हुई किन्तु दुर्भाग्यवश 20दिन में वो संतान मृत्यु को प्राप्त हो गयी।वो स्त्री हद से ज्यादा रोई और उस मृत बच्चे का शव लेकर एक सिद्ध महात्मा के पास गई ।महात्मा से रोकर कहने लगी मुझे मेरा बच्चा बस एक बार जीवित करके दीजिये, मात्र एक बार मैं उसके मुख से" माँ " शब्द सुनना चाहती हूँ ।स्त्री के बहुत जिद करने पर महात्मा ने 2मिनट के लिए उस बच्चे की आत्मा को बुलाया। तब उस स्त्री ने उस आत्मा से कहा तुम मुझे क्यों छोड़कर चले गए?मैं तुमसे सिर्फ एक बार ' माँ ' शब्द सुनना चाहती हूँ। तभी उस आत्मा ने कहा कौन माँ?कैसी माँ !!मैं तो तुमसे कर्मों का हिसाब किताब करने आया था।स्त्री ने पूछा कैसा हिसाब!!आत्मा ने बताया पिछले जन्म में तुम मेरी सौतन थी,मेरे आँखों के सामने मेरे पति को ले गई;मैं बहुत रोई तुमसे अपना पति मांगा पर तुमने एक न सुनी।तब मैं रो रही थी और आज तुम रो रही हो!!बस मेरा तुम्हारे साथ जो कर्मों का हिसाब था वो मैंने पूरा किया और मर गया। इतना कहकर आत्मा चली गयी।उस स्त्री को झटका लगा।उसे महात्मा ने समझाया देखो मैने कहा था न कि ये सब रिश्तेदार माँ,पिता,भाई बहन सब कर्मों के कारण जुड़े हुए हैं ।हम सब कर्मो का हिसाब करने आये हैं। इसिलए बस अच्छे कर्म करो ताकि हमे बाद में भुगतना ना पड़े।वो स्त्री समझ गयी और अपने घर लौट गयी ।
शिक्षा: हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए |
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♥ Om Shanti ♥
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ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन ||🌹
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🌷“मीठे बच्चे - एक बाप ही नम्बरवन एक्टर है जो पतितों को पावन बनाने की एक्ट करते हैं, बाप जैसी एक्ट कोई कर नहीं सकता''
🌷प्रश्नः संन्यासियों का योग जिस्मानी योग है, रूहानी योग बाप ही सिखलाते हैं, कैसे?
🌷उत्तर: संन्यासी ब्रह्म तत्व से योग रखना सिखलाते हैं। अब वह तो रहने का स्थान है। तो वह जिस्मानी योग हो गया। तत्व को सुप्रीम नहीं कहा जाता। तुम बच्चे सुप्रीम रूह से योग लगाते इसलिए तुम्हारा योग रूहानी योग है। यह योग बाप ही सिखला सकते, दूसरा कोई भी सिखला न सके क्योंकि वही तुम्हारा रूहानी बाप है।
🌷गीत: तू प्यार का सागर है...
🌹ओम् शान्ति।🌹
🌷बच्चे, बहुत लोग कहते हैं ओम् शान्ति अर्थात् अपनी आत्मा की पहचान देते हैं। परन्तु खुद समझ नहीं सकते। ओम् शान्ति का अर्थ बहुत निकालते हैं। कोई कहते हैं ओम् माना भगवान। परन्तु नहीं, यह आत्मा कहती है ओम् शान्ति। अहम् आत्मा का स्वधर्म है ही शान्त इसलिए कहते हैं मैं हूँ शान्त स्वरूप। यह मेरा शरीर है जिससे हम कर्म करते हैं। कितना सहज है। वैसे बाप भी कहते हैं ओम् शान्ति। परन्तु मैं सबका बाप होने कारण, बीजरूप होने कारण भी जो रचना रूपी झाड़ है, कल्पवृक्ष उसके आदि-मध्य-अन्त को जानता हूँ। जैसे तुम कोई भी झाड़ देखो तो उसके आदि मध्य अन्त को जान जाओ, वह बीज तो जड़ है। तो बाप समझाते हैं यह कल्प वृक्ष है, इसके आदि मध्य अन्त को तुम नहीं जान सकते, मैं जानता हूँ। मुझे कहते ही हैं ज्ञान का सागर। मैं तुम बच्चों को बैठ आदि मध्य अन्त का राज़ समझा रहा हूँ। यह जो नाटक है, जिसको ड्रामा कहा जाता, जिसके तुम एक्टर्स हो बाप कहते हैं मैं भी एक्टर हूँ। बच्चे कहते हैं हे बाबा पतित-पावन एक्टर बन आओ, आकर पतितों को पावन बनाओ। अब बाप कहते हैं मैं एक्ट कर रहा हूँ। मेरा पार्ट सिर्फ इस संगम समय ही है। सो भी मुझे अपना शरीर नहीं है। मैं इस शरीर द्वारा एक्ट करता हूँ। मेरा नाम शिव है। बच्चों को ही तो समझायेंगे ना। पाठशाला कोई बन्दरों वा जानवरों की नहीं होती है। परन्तु बाप कहते हैं कि इन 5 विकारों के होने कारण शक्ल तो मनुष्य जैसी है लेकिन कर्तव्य बन्दरों जैसे हैं। बच्चों को बाप समझाते हैं कि पतित तो सब अपने को कहलाते ही हैं। परन्तु यह नहीं जानते कि हमको पतित कौन बनाते हैं और पावन फिर कौन आकर बनाते हैं? पतित-पावन कौन? जिसको बुलाते हैं, कुछ भी समझ नहीं सकते। यह भी नहीं जानते हम सब एक्टर्स हैं। हम आत्मा यह चोला लेकर पार्ट बजाती हैं। आत्मा परमधाम से आती है, आकर पार्ट बजाती है। भारत के ऊपर ही सारा खेल बना हुआ है। भारत पावन, भारत पतित किसने बनाया? रावण ने। गाते भी हैं कि रावण का लंका पर राज्य था। बाप बेहद में ले जाते हैं। हे बच्चों, यह सारी सृष्टि बेहद का टापू है। वह तो हद की लंका है। इस बेहद के टापू पर रावण का राज्य है। पहले रामराज्य था अब रावण राज्य है। बच्चे कहते हैं बाबा रामराज्य कहाँ था? बाप कहते हैं बच्चे वह तो यहाँ था ना, जिसको सब चाहते हैं।
🌷तुम भारतवासी आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हो, हिन्दू धर्म के नहीं हो। मीठे-मीठे सिकीलधे लाडले बच्चों, तुम ही पहले-पहले भारत में थे। तुमको वह सतयुग का राज्य किसने दिया था? जरूर हेविनली गॉड फादर ही यह वर्सा देंगे। बाप समझाते हैं कि कितने और-और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं। मुसलमानों का जब राज्य था तो बहुतों को मुसलमान बनाया। क्रिश्चियन का राज्य था तो बहुतों को क्रिश्चियन बनाया। बौद्धियों का तो यहाँ राज्य भी नहीं हुआ तो भी बहुतों को बौद्धी बनाया। कनवर्ट किया है अपने धर्म में। आदि सनातन धर्म जब प्राय:लोप हो जाए तब तो फिर उस धर्म की स्थापना हो। तो बाप तुम सभी भारतवासियों को कहते हैं कि मीठे-मीठे बच्चे, तुम सब आदि सनातन देवी-देवता धर्म के थे। तुमने 84 जन्म लिए। ब्राह्मण, देवता, क्षत्रिय.... वर्ण में आये। अब फिर ब्राह्मण वर्ण में आये हो देवता वर्ण में जाने के लिए। गाते भी हैं ब्राह्मण देवताए नम:, पहले ब्राह्मणों का नाम लेते हैं। ब्राह्मणों ने ही भारत को स्वर्ग बनाया है। यह है ही भारत का प्राचीन योग। पहले-पहले जो राजयोग था, जिसका गीता में वर्णन है। गीता का योग किसने सिखलाया था? यह भारतवासी भूल गये हैं। बाप समझाते हैं कि बच्चे योग तो मैंने सिखलाया था। यह है रूहानी योग। बाकी सब हैं जिस्मानी योग। संन्यासी आदि जिस्मानी योग सिखलाते हैं कि ब्रह्म से योग लगाओ। वह तो रांग हो जाता है। ब्रह्म तत्व तो रहने का स्थान है। वह कोई सुप्रीम रूह नहीं ठहरा। बाप को भूल गये हैं। तुम भी भूल गये थे। तुम अपने धर्म को भूल गये हो। यह भी ड्रामा में नूंध है। विलायत में योग था नहीं। हठयोग और राजयोग यहाँ ही है। वह निवृत्ति मार्ग वाले संन्यासी कब राजयोग सिखला न सकें। सिखाये वह जो जानता हो। संन्यासी लोग तो राजाई भी छोड़ देते हैं। गोपीचन्द राजा का मिसाल है ना। राजाई छोड़ जंगल में चला गया। उसकी भी कहानी है। संन्यासी तो राजाई छुड़ाने वाले हैं, वह फिर राजयोग कैसे सिखला सकते। इस समय सारा झाड़ जड़ जड़ीभूत हो गया है। अभी गिरा कि गिरा। कोई भी झाड़ जब जड़जड़ीभूत हो जाता है तो अन्त में उसको गिराना पड़ता है। वैसे यह मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ भी तमोप्रधान है, इनमें कोई सार नहीं है। इनका जरूर विनाश होगा। इनके पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना यहाँ करनी होगी। सतयुग में कोई दुर्गति वाला होता नहीं। यह विलायत में जाकर योग सिखलाते हैं परन्तु वह है हठयोग। ज्ञान बिल्कुल नहीं। अनेक प्रकार के हठयोग हैं। यह है राजयोग, इसको रूहानी योग कहा जाता है। वह सब हैं जिस्मानी। मनुष्य, मनुष्य को सिखाने वाले हैं। बाप बच्चों को समझाते हैं कि मैं तुमको एक ही बार यह राजयोग सिखाता हूँ और कोई कदाचित सिखा न सके। रूहानी बाप रूहानी बच्चों को सिखाते हैं कि मामेकम् याद करो तो तुम्हारे सब पाप मिट जायेंगे। हठयोगी कब ऐसे कह न सकें। बाप आत्माओं को समझाते हैं। यह नई बात है। बाप तुमको अब देही-अभिमानी बना रहे हैं। बाप को देह है नहीं। इसके तन में आते हैं, इसका नाम बदल देते हैं क्योंकि मरजीवा बना है। जैसे गृहस्थी जब संन्यासी बनते हैं तो मरजीवा बने, गृहस्थ आश्रम छोड़ निवृति मार्ग ले लिया। तो तुम्हारा भी मरजीवा बनने से नाम बदल जाता है। पहले शुरू में सबके नाम लाये थे फिर जो आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती, भागन्ती हो गये तो नाम आना बन्द हो गया इसलिए अब बाप कहते हैं कि हम नाम दें और फिर भाग जायें तो फालतू हो जाता है। पहले आने वालों के जो नाम रखे, वह बहुत रमणीक थे। अब नहीं रखते हैं। उनका रखें जो सदैव कायम भी रहें। बहुतों के नाम रखे फिर बाप को फारकती दे चले गये इसलिए अब नाम नहीं बदलते हैं। बाप समझाते हैं कि यह ज्ञान क्रिश्चियन की बुद्धि में भी बैठेगा। इतना समझेंगे कि भारत का योग निराकार बाप ने ही आकर सिखाया था। बाप को याद करने से ही पाप भस्म होंगे और हम अपने घर चले जायेंगे। जो इस धर्म का होगा और कनवर्ट हो गया होगा तो वह ठहर जायेगा। तुम जानते हो कि मनुष्य, मनुष्य की सद्गति नहीं कर सकते। यह दादा भी मनुष्य है, यह कहता है कि मैं किसकी सद्गति नहीं कर सकता। यह तो बाबा हमको सिखलाते हैं कि तुम्हारी सद्गति भी याद से होगी। बाप कहते हैं बच्चों, हे आत्माओं मेरे साथ योग लगाओ तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। तुम पहले गोल्डन एजेड प्योर थे फिर खाद पड़ गई है। जो पहले देवी देवता 24 कैरेट सोना थे, अब आइरन एज में आकर पहुँचे हैं। यह योग कल्प-कल्प तुमको सीखना पड़ता है। तुम जानते हो उसमें भी कोई पूरा जानते, कोई कम जानते। कोई तो ऐसे ही देखने आते हैं कि यहाँ क्या सिखाते हैं। ब्रह्माकुमार कुमारियाँ इतने ढेर बच्चे हैं। जरूर प्रजापिता ब्रह्मा होगा ना जिसके इतने बच्चे आकर बने हैं, जरूर कुछ होगा तो जाकर उन्हों से पूछे तो सही। तुमको प्रजापिता ब्रह्मा से क्या मिलता है? पूछना चाहिए ना! परन्तु इतनी बुद्धि भी नहीं है। भारत के लिए खास कहते हैं। गाया भी जाता है पत्थरबुद्धि सो पारसबुद्धि। पारसबुद्धि सो पत्थरबुद्धि। सतयुग त्रेता में पारसबुद्धि गोल्डन एज थे फिर सिलवर एज दो कला कम हुई इसलिए नाम पड़ा चन्द्रवंशी क्योंकि नापास हुए हैं। यह भी पाठशाला है। 33 मार्क्स से जो नीचे होते हैं वह फेल हो जाते हैं। राम सीता फिर उनकी डिनायस्टी सम्पूर्ण नहीं है इसलिए सूर्यवंशी बन न सकें। नापास तो कोई होंगे ना क्योंकि इम्तहान भी बहुत बड़ा है। आगे गवर्मेंन्ट का आई.सी.एस. का बड़ा इम्तहान होता था। सब थोड़ेही पढ़ सकते थे। कोटों में कोई निकलते हैं। कोई चाहे तो हम सूर्यवंशी महाराजा महारानी बनें तो उनमें भी बड़ी मेहनत चाहिए। मम्मा बाबा भी पढ़ रहे हैं श्रीमत से। वे पहले नम्बर में पढ़ते हैं फिर जो मात पिता को फॉलो करते वही उनके तख्त पर बैठेंगे। सूर्यवंशी 8 डिनायस्टी चलती हैं। जैसे एडवर्ड द फर्स्ट, द सेकेण्ड चलता है। तुम्हारा कनेक्शन इन क्रिश्चियन्स से अधिक है। क्रिश्चियन घराने ने भारत की राजाई हप की। भारत का अथाह धन ले गये फिर विचार करो तो सतयुग में कितना अथाह धन होगा। वहाँ की भेंट में तो यहाँ कुछ भी नहीं है। वहाँ सब खानियाँ भरतू हो जाती हैं। अब तो हर चीज की खानियाँ खाली होती जाती हैं। फिर चक्र रिपीट होगा तो फिर सब खानियाँ भरतू हो जायेंगी। मीठे-मीठे बच्चों तुम अब रावण पर जीत पाकर राजाई ले रहे हो फिर आधाकल्प बाद यह रावण आयेगा फिर तुम राजाई गँवा बैठेंगे। अभी भारतवासी तुम कौड़ी मिसल बन गये हो। हमने तुमको हीरे जैसे बनाया। रावण ने तुमको कौड़ी जैसा बनाया है। समझते नहीं कि यह रावण कब आया? हम क्यों उनको जलाते हैं। कहते हैं कि यह रावण तो परम्परा से चला आता है। बाप समझाते हैं कि आधाकल्प के बाद यह रावण राज्य शुरू होता है। विकारी बनने कारण अपने को देवी देवता कह नहीं सकते। वास्तव में तुम देवी देवता धर्म के थे। तुम्हारे जितना सुख कोई नहीं देख सकते। सबसे अधिक गरीब भी तुम बने हो। दूसरे धर्म वाले बाद में वृद्धि को पाते हैं। क्राइस्ट आया, पहले तो बहुत थोड़े थे। जब बहुत हो जाएं तब तो राजाई कर सकें। तुमको तो पहले राजाई मिलती है। यह तो सब ज्ञान की बातें हैं। बाप कहते हैं हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो। आधाकल्प तुम देह-अभिमानी रहे हो। अब देही-अभिमानी बनो। घड़ी-घड़ी यह भूल जाते हो क्योंकि आधाकल्प की कट चढ़ी हुई है। इस समय तुम ब्राह्मण चोटी हो। तुम हो सबसे ऊंच। संन्यासी ब्रह्म से योग लगाते हैं उनसे विकर्म विनाश नहीं होते। हर एक को सतो रजो तमो में आना जरूर है। वापिस कोई भी जा नहीं सकते। जब सभी तमोप्रधान बन जाते हैं तब बाप आकर सभी को सतोप्रधान बनाते हैं अर्थात् सभी की ज्योति जग जाती है। हर एक आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। तुम हो हीरो हीरोइन पार्टधारी। तुम भारतवासी सबसे ऊंचे हो जो राज्य लेते हो फिर गंवाते हो और कोई राज्य नहीं लेता। वह राज्य लेते हैं बाहुबल से। बाबा ने समझाया है जो विश्व के मालिक थे वही बनेंगे। तो सच्चा राजयोग बाप के सिवाए कोई सिखला न सके। जो सिखाते हैं वह सब अयथार्थ योग है। वापिस तो कोई भी जा नहीं सकते। अभी है अन्त। सभी दु:ख से छूटते हैं फिर नम्बरवार आना है। पहले सुख देखना है फिर दु:ख देखना है। यह सब समझने की बातें हैं। कहा जाता है हथ कार डे दिल यार डे। काम करते रहो बाकी बुद्धि योग बाप से हो।
🌷तुम आत्मायें आशिक हो एक माशूक की। अभी वह माशूक आया हुआ है। सभी आत्माओं (सजनियों) को गुल-गुल बनाए ले जायेंगे। बेहद का साजन बेहद की सजनियाँ हैं। कहता है मैं सबको ले जाऊंगा। फिर नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जाकर पद पायेंगे। भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, बच्चों को सम्भालो। हे आत्मा तुम्हारी दिल बाप की तरफ हो। यही याद की प्रैक्टिस करते रहो। बच्चे जानते हैं अभी हम स्वर्गवासी बनते हैं, बाप को याद करने से। स्टूडेन्ट को तो बहुत खुशी में रहना चाहिए। यह तो बड़ा सहज है। ड्रामा अनुसार सबको रास्ता बताना है। कोई से डिबेट करने की दरकार नहीं है। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज आ गयी है। मनुष्य बीमारी से छूटते हैं तो बधाईयाँ देते हैं। यहाँ तो सारी दुनिया रोगी है। थोड़े समय में जयजयकार हो जायेगी। अच्छा!
🌷मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
🌷धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सच्चे-सच्चे आशिक बन हाथों से काम करते बुद्धि से माशूक को याद करने की प्रैक्टिस करनी है। बाप की याद से हम स्वर्गवासी बन रहे हैं, इस खुशी में रहना है।
2) सूर्यवंशी डिनायस्टी में तख्तनशीन बनने के लिए मात-पिता को पूरा-पूरा फॉलो करना है। बाप समान नॉलेजफुल बन सबको रास्ता बताना है।
🌷वरदान: अटूट कनेक्शन द्वारा करेन्ट का अनुभव करने वाले सदा मायाजीत, विजयी भव
जैसे बिजली की शक्ति ऐसा करेन्ट लगाती है जो मनुष्य दूर जाकर गिरता है, शॉक आ जाता है। ऐसे ईश्वरीय शक्ति माया को दूर फेंक दे, ऐसी करेन्ट होनी चाहिए लेकिन करेन्ट का आधार कनेक्शन है। चलते फिरते हर सेकण्ड बाप के साथ कनेक्शन जुटा हुआ हो। ऐसा अटूट कनेक्शन हो तो करेन्ट आयेगी और मायाजीत, विजयी बन जायेंगे।
🌷स्लोगन: तपस्वी वह है जो अच्छे बुरे कर्म करने वालों के प्रभाव के बन्धन से मुक्त है।
💖💞ओम शान्ति💖💞❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““* ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““* ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•**•.¸❤ ☼ ❤¸.•*“*❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•**•.¸❤‼️हमें कर्मों का फल नहीं बल्कि कर्म के पीछे के भावों का फल मिलता है।‼️*
🍂☘️ आपने हर किसी से सुना होगा कि अच्छे कर्म करो फल अच्छा मिलेगा, बुरा कर्म करोगे तो फल भी बुरा मिलेगा । सही बात है लेकिन हमें कर्मों का नहीं अपितु भावों का फल मिलता है। आइए इस सिद्धान्त को समझने का प्रयास करते हैं।*
*🍂☘️ फल हमें भावों का मिलता है ना कि कर्मों का, कर्म तो सिर्फ* *परिणाम तक पहुंचने का साधन मात्र है । ईश्वर मन को नोट कर रहा है ना कि शरीर को, शरीर से आप क्या करते हैं-ईश्वर को कोई मतलब नहीं है।* *बल्कि आपके मन में क्या चल रहा है, ईश्वर वह नोट कर रहा है। शरीर तो वही करेगा जैसा मन उसे चलाएगा।*
*🍂☘️ गीता में अर्जुन को 700 श्लोक की गीता सुनाकर भाव ही तो बदले, कहां वह कह रहा था कि ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा और पुरी गीता ध्यान से सुनने के बाद कहता है "नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा" । मेरा मोह नष्ट हो गया अब मैं युद्ध करुंगा। कहां उसे अपने पूर्व भावों की वजह से 'ब्रह्म हत्या' का पाप लगता परन्तु अब तो 'धर्म की रक्षा' का पुण्य मिलेगा और मिला भी क्योंकि भाव बदल गए तो परिणाम बदल गए, लेकिन कर्म वही रहा।*
*🍂☘️ अगर कोई बीच सड़क पर लोगों पर लाठी चलाएगा तो क्या* *होगा ? शायद पुलिस पकड़ ले जाए, शायद एक दिन जेल में भी डाल दे। पर अगर यही काम कोई पुलिस वाला करे, तो उसे जेल में नहीं डालेंगे बल्कि* *मेडल से नवाजा जाएगा। अब कर्म तो एक ही किया लाठी चार्ज का, पर एक को मेडल और एक को जेल ? क्योंकि कर्म के पीछे भाव अलग अलग थे, एक का भाव हिंसा को कम करने का था तथा दूसरे का हिंसा फैलाना।*
*🍂☘️ व्रत उपवास में भी हम कर्म एक ही करते हैं - भूखा रहने या भूख सहन करने का, पर भाव अथवा उद्देश्य अलग-अलग होने से फल* *अलग-अलग मिलता है, वैभव लक्ष्मी में लक्ष्मी की प्राप्ति, करवाचौथ में पति की लम्बी आयु, 16 सोमवार अच्छे पति के लिए आदि आदि । सभी व्रतों में कर्म एक ही है भूखा रहने का, पर भाव अलग-अलग होने के कारण फल अलग-अलग मिलता है । कर्म तो फल तक पहुंचने का एक मात्र साधन है । भिखारी को खाना ना मिले तो दो- तीन दिन तक भूखा रहता है - उसे तो किसी फल की प्राप्ति नहीं होती* *क्योंकि उसके भूखे रहने के पीछे कोई भाव नहीं है। इस प्रकार अलग-अलग भाव होने से फल भी अलग-अलग मिलता है, चाहे कर्म समान ही है..!!*❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““* ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““* ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•**•.¸❤ ☼ ❤¸.•*“*❤¸.•*““*•.¸❤ ☼ ❤¸.•**•.¸❤
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