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ईश्वर को देखें तो कहां देखें? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️

ईश्वर को देखें तो कहां देखें? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️

रात चांद निकला है, जोड़ लो हाथ, झुक जाओ पृथ्वी पर। गुलाब का फूल खिला है, मत चूको अवसर। बैठ जाओ पास, जोड़ लो हाथ, झुक जाओ। कौन जाने यह गुलाब की ताजगी, यह गुलाब जो गुलाल फेंक रहा हो, कृष्ण ने ही फेंकी हो! है तो सब गुलाल उसी की। अब तुम ऐसे मत बैठे रहना कि वह लेकर पिचकारी आएगा तब, कुछ नासमझ ऐसे बैठे हैं कि जब वह पिचकारी लेकर आएगा तब। और कपड़े भी उन्होंने पुराने पहन रखे हैं कि कहीं खराब न कर दे। वह रोज ही आ रहा है, प्रतिपल आ रहा है। उसके सिवा और कुछ आने को है भी नहीं। वही आता है।

इन वृक्षों में से झलकती हुई सूरज की किरणों को देखते हो! इन वृक्षों में जो किरणों ने जाल फैलाया है, उसे देखते हो! इन वृक्षों के बीच जो धूप—छाया का रास हो रहा है, उसे देखते हो! यह उसी का रास है। इन वृक्षों में जो पक्षी कलरव कर रहे हैं, यह वही है। अब तुम यह मत सोचो कि जब वह बांसुरी बजाएगा, तब हम सुनेंगे। यह उसी की बांसुरी है। कभी पक्षियों से गाता है, कभी बांसों से भी गाता है। यह सारा अस्तित्व उसका है। यह सब गुलाल उसकी है। चंदन की सुगंध में उसी की सुगंध है। वह फेंक रहा है, लुटा रहा है। मगर तुम्हारे दोनों हाथ नहीं जुड़े हैं; सो चूक—चूक जाते हो। दोनों हाथ जोड़ो, अंजुलि बनाओ। दोनों हाथ जोड़ो, ताकि तुम उसे भर लो।

कोई अवसर न चूको। जहां तुम्हें लगे कि यहां इशारा है, वहीं झुक जाओ। मंदिर—मस्जिद की राह मत देखो।

अजीब मूढ़ता छाई है लोगों पर! हिंदू चला जा रहा है अपने मंदिर की तलाश में, मुसलमान चला जा रहा है अपनी मस्जिद की तलाश में। मीलों चलता जा रहा है। रास्ते भर परमात्मा फैला हुआ है। राह के किनारे वृक्षों में खड़ा है। रास्ते के किनारे खेलते बच्चों में हंस रहा है। आकाश में उड़ते पक्षियों में उड़ रहा है। शुभ्र बदलियों में तैर रहा है। तुम पर सब तरफ से रोशनी फेंक रहा है; गुलाल लुटा रहा है; चंदन बांट रहा है। और तुम मूढ़ की तरह मंदिर चले जा रहे हो! तुम्हें अ

गर यहां नहीं दिखाई पड़ता तो मंदिर में कैसे दिखाई पड़ेगा? इतने

विराट में नहीं दिखाई पड़ता उस क्षुद्र से मंदिर में कैसे दिखाई पड़ेगा? इतने स्वाभाविक रूप में नहीं दिखाई पड़ता, तो वहां तो आदमी ने व्यवस्था बनाई है, वहां तो आदमी के बनाए हुए देवता विराजमान हैं, उनमें तुम्हें कैसे दिखाई पड़ेगा? वहां भी दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन औपचारिकता वश तुम झुक जाते हो।

जो फूल के पास न झुका, जो सूरज के सामने न झुका, जो बहती हुई नदी की धार के पास न झुका—वह मंदिर और मस्जिद में झुके, बात झूठी है। उसने धोखा दे दिया अपने को और दूसरों को।

तो असली सवाल है, जहां भी दोनों हाथ जुड़ जाएं, जैसे भी दोनों हाथ जुड़ जाएं। खोना ही मत अवसर। चुनाव भी मत करना। चुनाव की वजह से चूक रहे हो।

मीरा कहती है: बस एक ही आशा, एक ही अभीप्सा कि जिन चरणों में बैठ कर तुम्हारा स्वाद मुझे मिला है, जिन चरणों में बैठ कर मेरी नींद टूटी है, उन चरणों में पूरी की पूरी डूब जाऊं।

BAL VNITA MAHILA Ashram


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राम कृपा गुरु कृपा ऐसे गुरु को बल बल जाइये ;आप मुक्त मोहे तारे !गुरुबाणीसाधकजनों जो स्वयं प्रकाशमान हो वही दूसरो को प्रकाशित कर सकता है !जो स्वयं ही प्रकाशित ही नही वह भला दूसरो का क्या अंधकार दूर करेगा ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अतः गुरु काफी सोच समझकर धारण करना चाहिये !पर हमारे अहोभाग्यस्वामी जी महाराजश्री प्रेम जी महाराजश्री विश्वामित्र जी महाराजजैसे सुगढ़ संत हमे गुरु रूप में सुलभ हुए !इनका हृदय से बारम्बार धन्यवाद !धन्यवादराम राम,

*🌹🌹🌹🙏*आनंदित रहने की कला ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म में समय लगाए । राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है?राजा ने कहा, "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।गुरु ने पूछा, "अब तुम क्या करोगे ?राजा बोला, "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए।गुरु ने कहा, "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।राजा बोला, "फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा ।गुरु ने कहा, "अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है ।क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ?राजा बोला, "कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ।गुरु ने कहा, "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहनाएक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था।अब तो दोनों ही काम हो रहे थे ।जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था।अब उसे कोई चिंता नहीं थी।*इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ?कुछ भी तो नहीं! राज्य वही, राजा वही, काम वही; दृष्टीकोण बदल गया।**इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टीकोण बदलें।मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, "मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ" अब ईश्वर ही जाने।और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । फिर ही आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे।आपने देखा भी होगा की नौकरों को कोई चिंता नहीं होती मालिक का चाहे फायदा हो या नुकसान वो मस्त रहते है।*,

हे पिंजरे की ये मैनाहे पिंजरे की ये मैना, भजन कर ले राम का,भजन कर ले राम का, भजन कर ले श्याम का॥टेर॥राम नाम अनमोल रतन है, राम राम तूँ कहना,भवसागर से पार होवे तो, नाम हरिका लेना॥१॥भाई-बन्धु कुटुम्ब कबीलो, कोई किसी को है ना,मतलब का सब खेल जगत् में, नहीं किसी को रहना॥२॥कोड़ी-कोड़ी माया जोड़ी, कभी किसी को देई ना,सब सम्पत्ति तेरी यहीं रहेगी, नहीं कछु लेना-देना॥३॥

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