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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

*2 मिनट अपनी संस्कृति की झलक को पढ़े।* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ◆1 जनवरी को क्या नया हो रहा है?◆न ऋतू बदली ...न मौसम!◆न कक्षा बदली... न सत्र!◆न फसल बदली...न खेती!◆न पेड़ पोधों की रंगत!◆न सूर्य चाँद सितारों की दिशा!◆ना ही नक्षत्र!!◆1 जनवरी आने से पहले ही सब नववर्ष की बधाई देने लगते हैं।मानो कितना बड़ा पर्व है।◆नया एक दिन का नही होता कुछ दिन तो नई अनुभूति होंनी ही चाहिए। हमारा देश त्योहारों का देश है।ईस्वी संवत का नया साल 1जनवरी को और भारतीय नववर्ष ( विक्रमी संवत)चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है।आईये देखते हैं दोनों का तुलनात्मक अंतर।1- *प्रकृति*1जनवरी कोई अंतर नही जैसा दिसम्बर वैसी जनवरी। चैत्र मास में चारो तरफ फूल खिल जाते हैं, पेड़ो पर नए पत्ते आ जाते हैं।चारो तरफ हरियाली मानो प्रकृति नया साल मना रही हो।2- *वस्त्र*दिसम्बर और जनवरी में व्ही उनी वस्त्र।कंबल रजाई ठिठुरते हाथ पैर चैत्र मास में सर्दी जा रही होती है गर्मी का आगमन होने जा रहा होता है ।3- *विद्यालयो का नया सत्र*दिसंबर जनवरी वही कक्षा कुछ नया नही। जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलो का रिजल्ट आता है नई कक्षा नया सत्र यानि विद्यालयों में नया साल।4- *नया वित्तीय वर्ष*दिसम्बर जनबरी में कोई खातो की क्लोजिंग नही होती। जबकि 31 मार्च को बैंको की(audit) कलोसिंग होती है नए वही खाते खोले जाते है।सरकार का भी नया सत्र शुरू होता है।5- *कलैण्डर*जनवरी में नया कलैण्डर आता है। चैत्र में नया पंचांग आता है उसी से सभी भारतीय पर्व, विवाह और अन्य महूर्त देखे जाते हैं ।इसके बिना हिन्दू समाज जीबन की कल्पना भी नही कर सकता इतना महत्व पूर्ण है ये कैलेंडर यानि पंचांग।6- *किसानो का नया साल*दिसंबर जनवरी में खेतो में व्ही फसल होती हैजबकि मार्च अप्रैल में फसल कटती है नया अनाज घर में आता है तो किसानो का नया वर्ष का उतसाह ।7- *पर्व मनाने की विधि*31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर मदिरा पान करते है, हंगामा करते है ,रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना, रेप जैसी बारदात,पुलिस प्रशासन बेहाल,और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश जबकि भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होता है पहला नवरात्र होता है घर घर मे माता रानी की पूजा होती है।शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है।8- ऐतिहासिक महत्त्व1 जनवरी का कोई ऐतेहासिक महत्व नही हैजबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत भगवान झूलेलाल का जन्म।नवरात्रे प्रारंम्भ,ब्रहम्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना, इत्यादि का संबंध इस दिन से है।अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला....अपना नव संवत् ही नया साल है।जब ब्रह्माण्ड से लेकर सूर्य चाँद की दिशा,मौसम,फसल,कक्षा,नक्षत्र,पौधों की नई पत्तिया,किसान की नई फसल,विद्यार्थी की नई कक्षा,मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होते है। जो विज्ञान आधारित है।*अपनी मानसिकता को बदले।**विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना को पहचाने।**स्वयं सोचे की क्यों मनाये हम 1 जनवरी को नया वर्ष केबल कैलेंडर बदलें। अपनी संस्कृति नही।**आओ जगे जगाये**भारतीय संस्कृति अपनाये* ।। जय श्री राधे जी ।।,

*🌹🌹🌹🙏*आनंदित रहने की कला ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *एक राजा बहुत दिनों से विचार कर रहा था कि वह राजपाट छोड़कर अध्यात्म में समय लगाए । राजा ने इस बारे में बहुत सोचा और फिर अपने गुरु को अपनी समस्याएँ बताते हुए कहा कि उसे राज्य का कोई योग्य वारिस नहीं मिल पाया है । राजा का बच्चा छोटा है, इसलिए वह राजा बनने के योग्य नहीं है । जब भी उसे कोई पात्र इंसान मिलेगा, जिसमें राज्य सँभालने के सारे गुण हों, तो वह राजपाट छोड़कर शेष जीवन अध्यात्म के लिए समर्पित कर देगा ।गुरु ने कहा, "राज्य की बागड़ोर मेरे हाथों में क्यों नहीं दे देते ? क्या तुम्हें मुझसे ज्यादा पात्र, ज्यादा सक्षम कोई इंसान मिल सकता है?राजा ने कहा, "मेरे राज्य को आप से अच्छी तरह भला कौन संभल सकता है ? लीजिए, मैं इसी समय राज्य की बागड़ोर आपके हाथों में सौंप देता हूँ ।गुरु ने पूछा, "अब तुम क्या करोगे ?राजा बोला, "मैं राज्य के खजाने से थोड़े पैसे ले लूँगा, जिससे मेरा बाकी जीवन चल जाए।गुरु ने कहा, "मगर अब खजाना तो मेरा है, मैं तुम्हें एक पैसा भी लेने नहीं दूँगा ।राजा बोला, "फिर ठीक है, "मैं कहीं कोई छोटी-मोटी नौकरी कर लूँगा, उससे जो भी मिलेगा गुजारा कर लूँगा ।गुरु ने कहा, "अगर तुम्हें काम ही करना है तो मेरे यहाँ एक नौकरी खाली है ।क्या तुम मेरे यहाँ नौकरी करना चाहोगे ?राजा बोला, "कोई भी नौकरी हो, मैं करने को तैयार हूँ।गुरु ने कहा, "मेरे यहाँ राजा की नौकरी खाली है । मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे लिए यह नौकरी करो और हर महीने राज्य के खजाने से अपनी तनख्वाह लेते रहनाएक वर्ष बाद गुरु ने वापस लौटकर देखा कि राजा बहुत खुश था।अब तो दोनों ही काम हो रहे थे ।जिस अध्यात्म के लिए राजपाट छोड़ना चाहता था, वह भी चल रहा था और राज्य सँभालने का काम भी अच्छी तरह चल रहा था।अब उसे कोई चिंता नहीं थी।*इस कहानी से समझ में आएगा की वास्तव में क्या परिवर्तन हुआ?कुछ भी तो नहीं! राज्य वही, राजा वही, काम वही; दृष्टीकोण बदल गया।**इसी तरह हम भी जीवन में अपना दृष्टीकोण बदलें।मालिक बनकर नहीं, बल्कि यह सोचकर सारे कार्य करें की, "मैं ईश्वर कि नौकरी कर रहा हूँ" अब ईश्वर ही जाने।और सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दें । फिर ही आप हर समस्या और परिस्थिति में खुशहाल रह पाएँगे।आपने देखा भी होगा की नौकरों को कोई चिंता नहीं होती मालिक का चाहे फायदा हो या नुकसान वो मस्त रहते है।*,

Ram Ram ji,🌹यथार्थ को बदलने की शक्ति🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब एक फ़कीर किसी गाँव से गुज़र रहा था l रास्ते में उसे एक औरत मिली जिसने उसे बताया कि उसका बेटा बहुत बीमार है l फ़कीर ने औरत से, उसे अपने घर ले चलने के लिए कहा lजब फ़कीर उसके घर पहुंचा तो आसपास के कई घरों के लोग भी वहां पर आ गए l उन लोगों ने पहले कभी किसी फ़कीर को नहीं देखा था l उत्सुकतावश वे वहां भीड़ लगाकर खड़े हो गए औरत अपने बीमार बच्चे को फ़कीर के पास लेकर आई, फ़कीर ने बड़े प्यार से बच्चे को गोद में लेकर उसके स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना की lभीड़ में से एक आदमी चिल्लाकर फ़कीर से बोला – “क्या आपको वाकई लगता है कि आपकी प्रार्थना से ये बच्चा अच्छा हो जायेगा जबकि सारी दवाईयां बेकार साबित हो चुकी हैं?”फ़कीर ने उससे कहा – “तुम मूर्ख हो ! तुम इन सब बातों के बारे में कुछ नहीं जानते !”यह सुनते ही उस आदमी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया. वह कुछ कहने वाला ही था कि फ़कीर उसके पास आये और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले – *“यदि एक शब्द में तुम्हें इतना क्रुद्ध और तप्त करने की शक्ति है तो दूसरे शब्द क्या तुम्हें शांत और स्वस्थ नहीं कर सकते?भाषा में यथार्थ को बदलने की शक्ति होती है.* इसलिए, अपने शब्दों का प्रयोग उन्हें समर्थ यंत्र मानकर करो. उनसे लोगों को स्वस्थ करो, प्रसन्न करो, माफ़ करो, आर्शीवाद दो, सबकी मंगल कामना करो l!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!🙏♥️🌹राधे राधे जी🌹♥️🙏 सदैव जपिए एवँ प्रसन्न रहिए.....!!Ram Ram ji ,

साधक की उंगलियाँ माला के ऊपर नृत्य करती हैं। भक्त के कान कीर्तन सुनते हुये नृत्य करें , जीभ हरि -कीर्तन करती हुई नृत्य करे और मन व उंगली राम नाम की माला जपते रहें। राम -नाम के जपने वाले काल को भी हनन कर डालते हैं। यह भाव ऊंचा और श्रेष्ठ है। राम भक्त का नाश कभी नहीं होता। यदि अवधि पूरी हो गई है , तो भले ही शरीर छूटे। निर्भयता , निडरता होनी चाहिये , तब लाभ होता है। मनोबल , वाणीबल बढता जाता है। यह साधन बड़ा लाभदायक है।(By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब),

परम पूज्य डॉक्टर श्री विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद से by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ((217))रामायणी साधना सत्संग लंका कांडभाग ५५ (55) *परमात्मा श्री राम का असुरों के साथ युद्ध ,श्री राम एवं लक्ष्मण का नागपाश में बंधना। गरूड़ जी महाराज का नागपाश के बंधन से मुक्त करना*हनुमान उसे कह कर आए थे, जगजननी के नाते जो हमारी एक ही मां है सबकी, उसके नाते मैं और आप भाई-भाई । वह राक्षस जाति के हैं, यह वानर जाति के हैं, आपस में कोई संबंध नहीं, लेकिन हनुमान जी महाराज तर्क दृष्टि से विभीषण जी महाराज को यह स्पष्ट करके आए थे, हम भाई भाई हैं । लेकिन वह विभीषण है जो देह बुद्धि के भाई भाई हैं, भूल नहीं पाया। वह अभी भी कहता है दशानन का भाई मिलने के लिए आपकी शरण लेने के लिए आया है । काश उस वक्त ही उसने कह दिया होता कि हनुमान का भाई आया हुआ है, तो बात तो इतनी देरी जो है, वह ना लगती । अब तो यह मरण काटन का हिसाब किताब चलता रहेगा । अभी आपने देखा मेघनाद जी ने प्रभु राम एवं लक्ष्मण दोनों को नागपाश में बांध दिया। गरुड़ जी महाराज ने आकर उन्हें इस बंधन से मुक्त किया । जय जयकार हुई । उसके बाद पुन: युद्ध का आरंभ हो गया । कल देखेंगे कौन-कौन मरते हैं ? सभी मर जाएंगे, देखना क्या है ? कोई नहीं रहना, सभी ने मर जाना है । भगवान ने एक-एक को चुन-चुन कर मारना है । कोई नहीं बचने वाला, सारी की सारी सेना उनकी खत्म हो जाएगी। बचेंगे वही जो राम के साथ हैं, बाकी सबके सब मर जाएंगे पुरुष । महिलाएं बचेंगी । किसी को रोना धोना भी तो है ना मरने के बाद ।‌उनको बचा कर रखा है । उनको भगवान नहीं मारते । रोइएगा, धोइएगा आप बाद में, इनकी मृत्यु के ऊपर । यह अपने कटु कर्मों का फल भोग रहे हैं।कुंभकरण के साथ भक्तजनों भगवान राम, जो रावण की आपस में चर्चा है, बड़ी रोचक है; कल जिस वक्त कुंभकरण जी आएंगे मरने के लिए, उस वक्त याद दिलाना, यह चर्चा करेंगे । थोड़े मिनटो के लिए, यही 5-10 मिनट के लिए चर्चा काफी रहेगी, पर बड़ी सुंदर चर्चा है । अच्छी लगेगी आपको । मुझे पढ़कर बहुत अच्छी लगी, इसलिए चाहूंगा की आप भी उसे सुनो, और आप भी उसका आनंद लो ।,

राम जपते रहो काम करते रहो , By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब वक्त जीवन का यूंही निकल जायेगा । अगर लगन सच्ची भगवान से लग जायेगी , तेरे जीवन का ये नक्शा बदल ही जायेगा । लाख चौरासी भृमण किया दु:ख सहा , पाया मुश्किल से ऐसा मनुष्य का जनम । राह चलते रहो करके सीधी ये नज़र , पैर नाजुक है पीछे फिसल जायेगा ।छोड छल कपट मोह माया जगत , लो प्रभू से लगा ले जगत देव की शरण । मोम सा दिल है इन दया सिन्धु का , असर पडते ही फोरन पिघल जायेगा ।तेरे बिना और नहीं जाना , गुण गांवा नित तेरे ।तेरे बिना और नहीं जाना , गुण गांवा नित तेरे ।,

राम राम जी 🙏🏻🙏🏻• *🌹श्री भक्ति प्रकाश*🌹 *🌹साधन प्रकाश*🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹 *कर्म योग* *पृष्ठ संख्या-234* मानस आदिक कर्म न्यारे,कहें धर्म स्व पर के सारे। संयम नियम साधना सारीयें हैं यजन सदा सुखकारी।।48।।इनका करना धर्म बताया, यजन शेष अमृत सम गाया।कर यजन जो जन अन्न खाते, अमृत भोजी सुर पद पाते।।49।।सर्व साधन हैं कर्माधारा,कर्म बिना नहीं हो निस्तारा।क्रिया आधार हरि ही मानो,पूर्ण कर्म भक्ति में जानो।।50।।विनीत जिज्ञासु कोमल होवे, सत्संगति से मन मल धोवे।पाय ज्ञान जो तत्व है सारा,उस से होवे पार उतारा।।51।।गुरूजन का सेवक हो सीखे,विनय भाव में शुभ ही दीखे।ले उपदेश करे शुभ करणी,तीनों ताप पाप की हरणी।।52।।उस से खिले ज्ञान की ज्योति, प्रतीति निज रूप की होती। हरि लीला अपने में देखे,कर दे दूर पाप के लेखे।।53।।हो चाहे पापी अति भारा, नाम नाव चढ़ पाय किनारा।क्रमशः,

नववर्ष की पूर्व संध्या पर 💐दिव्य अनुभूतियाँ 💐 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भाग १नव वर्ष की पूर्व सन्ध्या पर गुरूजनों की बहती कृपास्वरूप फिर से उन्होंने झोली में यह प्रसाद डाला । आप सभी की सेवा में उनकी अद्भुत लीलाएँ समर्पित हैं । कैसे तत्व रूप में गुरूजन संग हैं तथा जीवन के कष्टमय पलों को कष्टमय नहीं रहने देते व परलोक भी सुधारते हैं, इसकी बहुत ही सुंदर व अद्भुत अनुभूतियाँ । १) उत्तर भारत के महानगर में एक साधिका जिनके पारिवारिक जीवन में उथल पुथल चल रही थी और उस के कारण जाप ध्यान उचाट हो रखा था । मन नहीं लग पा रहा था। उन्होंने अपने वरिष्ठ साधकों व संगी साधकों में इस बात की चर्चा की। सह साधकों ने प्रार्थना भी अवश्य की होगी। अगली रात्री उनको स्वप्न आया कि एक अद्भुत सी बस है। उसमें साधक गण बैठे हैं व परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री बस चला रहे हैं । वह बस उनके घर के आगे रुकी व दरवाज़ा खुला। उन्होंने पूज्य महाराज से पूछा - महाराज यह सब कहाँ जा रहे हैं ? महाराज बोले यह मेरे धाम जा रहे हैं । वे बोलीं- महाराज मुझे भी जाना है।महाराज बोले- बस में तो जगह नहीं है! वे बोली- महाराज ,मैं श्री चरणों में बैठ जाऊँगी , मुझे भी ले चलिए। महाराज ने कहा -ठीक है । तू नहीं मानेगी।बैठ जा।फिर वह बस आगे किसी और साधिका के घर रुकी और वे भी बैठी, पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के चरणों में । अब वे साधिका फिर से बोली- महाराज , अपना चेहरा तो दिखा दीजिए! पूज्य महाराज बोले- नहीं देख पाओगे । ऐसा कह वे मुड़े और अनन्त प्रकाश ही प्रकाश दिखा ।वे साधिका स्वप्न से रात्री २ बजे उठ गई। साथ ही उनके पति भी जागे और बोले- यहाँ इतना प्रकाश कैसा? मैंने अभी देखा ! वे खिड्की की ओर गए , बाहर देखा पर गहन अंधेरे के सिवाय कुछ न था !! इस अद्भुत स्वप्न के उपरान्त उन साधिका की पारिवारिक समस्याओं को शांति मिलीं । सदगुरू महाराज की लीला अतुलनीय, अवरणनीय ! २) पच्चिम भारत के महानगर से, एक महिला के रिश्ते में एक साधिका ने सवा करोड़ का संकल्प ले रखा था। उस महिला का मन ही मन बहुत लगाव था उन साधिका से। किन्तु अचानक साधिका में अद्भुत परिवर्तन देख वे बहुत हैरान थीं और जान नहीं पा रहीं थी कि यह बदलाव कैसे व किस कारण हुआ । पारिवारिक समस्याओं हेतु बिना दीक्षा ही उन्होंने सवा करोड़ संकल्प ले लिया। जैसे जप बढ़ा , दैव संयोग से उनकी संगति सत्संगियों से हुई । अब मन में दीक्षा लेने का भाव उठा। किन्तु ससुराल में सब बहुत ही ख़िलाफ़ थे । पर उनकी तड़प व उत्कण्ठा कम न हुई । दैव कृपा से अचानक एक दिन एक सत्संगी से बात करते पता चला कि पास ही के शहर में खुला सत्संग लग रहा है। दीक्षा भी होगी । अब उनके रिश्ते में जो साधिका थीं , उनके परिवार का माहौल भी बहुत तंग । उन सत्संगी ने जब उनसे कहा कि उस महिला को दीक्षा दिलवा आओ तो तुम्हारा भी सत्संग में जाना हो पाएगा.. मन में लहर जागी किन्तु पारिवारिक माहौल के कारण, यही कहा कि नहीं बन पाएगा। कोई नहीं जाने देगा। पर फिर भी यही कहा कि यदि गुरूजन चाहें तो कोई नहीं रोक सकता! उन्होंने टिकटें बुक करवादीं । जब घर में बात की तो दोनों परिवारों ने बिना चूँ चां किए स्वीकृति दे दी !!! वे दोनों खुला सत्संग लगा कर आईं । अद्धभुत आनन्द,अविरल प्रेमाश्रु ,समाधिस्थ स्थिति व पूर्ण पवित्रीकरण का आभास हुआ । जिन महिला ने दीक्षा ली , उनको दीक्षा उपरान्त ऐसा महसूस हुआ , कि जैसे वे ज़मीन पर ही नहीं चल रहीं !!! महाराजश्री को दीक्षा देते लगा कि यह सब मैं पहले भी सुन चुकी हूँ ! संसार की आसक्ति की गाँठें कम हुई तथा गुरूजनों के प्रति प्रेम और गहरा व बढ़ा । गुरूजनों की आश्चर्यजनक कृपा बंद नहीं हुईं ! उन्हें महसूस होता है कि वे उनकी सुनते हैं ! वे सब सोच कर कृत कृत हो जाती हैं ।जय जय राम !,

करूं शुक्रिया गुरुजी सदा तेरा , By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब सहारा दिया तुने मुझे हर दफा ।मुझे क्या पता भलाई है क्या मेरी , तेरे आसरे गुजरती है जिंदगी मेरी । जो मर्जी तेरी वही मेरी है रज़ा , सहारा दिया तुने मुझे हर दफा । करूंं शुक्रिया गुरुजी ..........दर्दां दी दवाई तू दर्दां दी दवाई तू , बाकी सब कुछ माया एक असल कमाई तू । हवाले तेरे सभी हाल हैं मेरे , सभी सुख तेरे सभी दुख भी हैं तेरे । तेरा है तेरा नहीं कुछ भी है मेरा , सहारा दिया तुने मुझे हर दफा । करूं शुक्रिया गुरुजी ......मंगना भी नहीं पैंदा बिन बोलियां ही ,दाता दिल दीयां गल सुन लेन्दा।,

मेरी बांह पकड लो एक बार , प्रभु एक बार बस एक बार । By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब मेरी बांह पकड लो एक बार, गुरुजी एक बार बस एक बार ।मोक्ष अधवा मुक्ति क्या है ?मोक्ष अधवा मुक्ति किसी जगह या किसी स्थान का नाम नहीं है । मुक्ति अथवा मोक्ष आपके अन्दर में एक स्थिति का नाम है , जहां आप अपने आपको मुक्त पाते हो । जहां आप अपने अन्दर मोह , ममता ढूढने पर भी नहीं पाते हैं । मुक्ति नाम की कोई चीज ही नहीं है , मोह का क्षय हो जाना ही मुक्ति है ।मेरी बांह पकड लो एक बार गुरुजी एक बार बस एक बार ।ये जग अति गहरा सागर है , सिर धरी पाप की गागर है। कुछ हलका करदो भार , गुरुजी एक बार बस एक बार।सौ बार नहीं बस एक बार , बस एक बार प्रभु एक बार ।,

राम राम जी 🙏🏻🙏🏻• *🌹श्री भक्ति प्रकाश*🌹 By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब *🌹साधन प्रकाश*🌹 🌹 *कर्म योग*🌹 *पृष्ठ संख्या-234-235* क्रमश से आगे सारे पाप ज्ञान से भागे,आत्म-देव तभी ही जागें। ज्ञान समान न पावन जाने,अन्य साधन कहें सुजन सियाने।।55।।श्रद्धालु शुभ ज्ञान को पाता,प्रभु भक्त मन को वश लाता।शीघ्र ज्ञान से शांति आवे,अन्त परम सुधाम में जावे।।56।।श्रद्धा विहीन मलिन अज्ञानी, संशय शील हो पाय हानी।दोनों लोक वही जन खोवे,पापों में निज रूप डबोवे।।57।।जो जन कर्म भक्ति शुभ धारे,पाप नाश कर संशय मारे।आत्मवान को कर्म न लागे, बुरी वासना उस से भागे।।58।।कर्म संन्यास सुकर्म विचारो,कर्म योग उत्तम मन धारो।कर्म योग संन्यास से ऊँचा, सन्त कहें यह सार समूचा।।59।।द्वेष कामना का जो त्यागी, संन्यासी है वह वैरागी।कर्म रहित संन्यास बहाना, मत पन्थों का ताना बाना।।60।।*कर्म योग में धर्म समाया,**भक्ति में सब सार है आया।**भक्त है कर्मी त्यागी ज्ञानी।**भक्तिमय ऊँचीगति मानी।।61।।*🌹🌹🌹🌹

राम कृपा गुरु कृपा ऐसे गुरु को बल बल जाइये ;आप मुक्त मोहे तारे !गुरुबाणीसाधकजनों जो स्वयं प्रकाशमान हो वही दूसरो को प्रकाशित कर सकता है !जो स्वयं ही प्रकाशित ही नही वह भला दूसरो का क्या अंधकार दूर करेगा ! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अतः गुरु काफी सोच समझकर धारण करना चाहिये !पर हमारे अहोभाग्यस्वामी जी महाराजश्री प्रेम जी महाराजश्री विश्वामित्र जी महाराजजैसे सुगढ़ संत हमे गुरु रूप में सुलभ हुए !इनका हृदय से बारम्बार धन्यवाद !धन्यवादराम राम,

परम पूज्य डॉक्टर श्री By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब विश्वामित्र जी महाराज जी के मुखारविंद सेशांति भाग-२किस बात की चिंता सर्वप्रथम धन नहीं है, कम है, नहीं है | ऐसा तो कोई व्यक्ति नहीं, कम है मानो संतोष नहीं है इससे, तो इस बात की चिंता । परमेश्वर ने कृपा करी अब बहुत आ गया है तो उसे संभालने की चिंता, इसको कैसे रखें इस बात की चिंता, इसको कोई छीन के ना ले जाए, क्योंकि बेईमानी से कमाया है, अत्याचार से कमाया है, अन्याय से कमाया है | इस बात का भय भी साथ ही साथ आ जाता है | कहा ना आपकी सेवा में जहां चिंता होती है वहां भय भी साथ ही साथ होता है | दोनों ही साथ साथ चलते हैं | संतान नहीं है इस बात की चिंता, अधिक हो गई है तो इस बात की चिंता | अनेक कारण है भक्तजनों चिंताओं के जो हमने अपने आप को लगाए हुए हैं | एक कारण यश मान की चाह की चिंता, परमात्मा बचाए इससे ।धन की चिंता का तो कुछ हो सकता है लेकिन यश मान की प्राप्ति की चिंता है इससे तो कभी भूख मिटती ही नहीं | इससे तो कभी तृप्ति होती ही नहीं | मारा मारा व्यक्ति फिरता है इसके लिए | अब यश मान प्राप्त हो गया है, तो मेरे से अधिक यश मान किसी और को ना प्राप्त हो जाए, इस बात की चिंता | इसलिए दूसरों को नीचा कैसे दिखाया जाए, इनके यश मान को धूमिल कैसे किया जाए, इस बात की चिंता | आदमी अपने आप को महिला है या पुरुष इन्हीं चिंताओं के घेरे में, अपने आप को घेरे रखता है | यह तो हो गई वह बातें जिनका कोई कारण है | रोग लग गया इस बात की चिंता ठीक होऊंगा के नहीं होऊंगा | कहीं मर तो नहीं जाऊंगा | मर जाऊंगा तो वहां जाकर क्या मुंह दिखाना है, इस बात की चिंता, इस बात का भय | कितने कारण है चिंताओं के? अंत नहीं है इन कारणों का | भक्तजनों एक और कारण है चिंता का मैं समझता हूं जो अति बदकिस्मत हैं उनको यह कारण मिलता है | क्या कारण है ? बिन कारण की चिंता | यह क्या है ? मेरे बाद क्या होगा ? इस बात की चिंता आदमी लगाकर रखता है, मेरे बाद क्या होगा ? इतनी दुनिया चली गई है संसार तो वैसे ही चल रहा है, कोई इसका कुछ नहीं कर सका, इसको कुछ नहीं होता |एक सेठ थे । इतने बड़े सेठ एक दिन बुढ़ापा आया हुआ था ।अपने मुनीमो को बुलाकर कहा मेरे पास कितनी पूंजी है इसका हिसाब किताब लगा के मुझे दिखाइएगा | मुनीमो ने कहा महाराज एक दिन में तो हो नहीं सकता | बहुत से मुनीम है हिसाब किताब करने वाले, लेकिन आपके पास संपत्ति भी बहुत है, इसलिए महाराज एक सप्ताह का समय दीजिएगा, तो एक सप्ताह में हम सब हिसाब किताब करके आपकी सेवा में प्रस्तुत कर देंगे | ठीक बात है हिसाब किताब करके एक मुनीम ने जा कर कहा, सेठ जी चार पीढ़ी तक जितनी संतान अभी आपकी है इतनी ही संतान आगे होती रहे, चार पीढ़ी तक जिंदगी भर वह जो आ रही संतान है, आगामी संतान है कुछ ना कमाए तो भी उनका गुजारा अब वैसे ही चलेगा ऐशो-आराम बिल्कुल वैसा ही होगा जैसा आपको मिल रहा है | सेठ कहते हैं पांचवी पीढ़ी का क्या होगा? पांचवी पीढ़ी का क्या होगा ? दिन-रात यह धुंन लग गई है आप जैसे कहते हो ना अमुक व्यक्ति को वहम हो गया है, उस व्यक्ति को, सेठ को वहम हो गया । पांचवी पीढ़ी का क्या होगा ? इसको संतों महात्माओं यह कहोगे अकारण चिंता | नौकरी छूट जाएगी तो क्या होगा ? प्रमोशन नहीं होगी तो क्या होगा ? अकारण चिंता, कोई इनका मतलब नहीं है ।भक्तजनों चिंता का कारण कुछ भी है | एक बात तो आप मानोगे ना आजकल ईर्ष्या का सम्राज्य है सब जगह पर, घर में प्रवेश करिए एक भाई दूसरे भाई से ईर्ष्यालु है | एक पुत्री दूसरी पुत्री से ईर्ष्यालु है | ननंद भाभी के प्रति ईर्ष्यालु है | सास बहू के प्रति ईर्ष्यालु है | पुराना साधक छोटे साधक के प्रति ईर्ष्यालु है | छोटा साधक आगे बढ़ रहा है हम वहीं के वहीं हैं । इस बात की ईर्ष्या चल रही है | संतों महात्माओं में भी ईर्ष्या है | इसके अधिक शिष्य हो गए हैं, मेरे अभी कम हैं इस बात की ईर्ष्या भी वहां चल रही है | इसलिए भाग दौड़ धूप लगी रहती है । दूरदराज तक, मानो जिस प्रकार चिंता का साम्राज्य है, चिंता के बिना कोई व्यक्ति नहीं है, ठीक इसी प्रकार से यूं कहिएगा ईर्ष्या के अतिरिक्त कोई नहीं, है ना बेटा ! ईर्ष्या भी सब जगह है| एक देश दूसरे देश के प्रति ईर्ष्यालु है | इसी कारण तो झंझट खड़े हुए हैं यही तो कारण है हमारी चिंताओं का, यही तो कारण है हमारी व्याकुलता का, यही तो कारण है हमारे शारीरिक एवं मानसिक रोगों का | यह ईर्ष्या का रोग बचपन से ही आरंभ हो जाता है | आप अपनी लड़की को कम प्यार देकर देखिएगा पुत्र को ज्यादा दीजिएगा वह लड़की आप का जीना हराम कर देगी | ईर्ष्या के कारण | भक्तजनों होना तो यूं चाहिए हम आगे बढ़ना चाहते हैं तो दूसरों को छोटा बना के नहीं आगे बढ़ना चाहते हो तो पुरुषार्थ करो, मेहनत करो, विवेक अपना प्रयोग करो और आगे बढ़ो तब तो मजा हुआ | तब तो परमेश्वर के घर में आपका मान-सम्मान है और यदि दूसरे को नीचा दिखाने में लग गए हुए हो तो मानो अपनी शक्तियां व्यर्थ गवा रहे हो | और यदि साधक हो तो अपनी साधना का स्तर नष्ट कर रहे हो | खत्म हो जाएगी वह साधना, किसी काम की नहीं रहेगी | क्यों सारी साधना इन्हीं कामों में लगी हुई है अमुक व्यक्ति को नीचा कैसे दिखाना है, सेवा के क्षेत्र में लोग उतरते हैं । मैं साधकों की बात कर रहा हूं, नेताओं की नहीं, सेवा के लिए सब साधक ही बैठे हुए हैं । राम नाम जपने वाले या कल को जपना शुरु करने वाले बैठे हुए हैं |सेवा के क्षेत्र में लोग उतरते हैं इसके पीछे उद्देश्य क्या है ? इसके पीछे उद्देश्य क्या यह है कि मुझे परमात्मा को प्रसन्न करना है। परमात्मा को जो प्यारे हैं उनकी सेवा सुश्रुषा करनी है या ध्यान दें भक्तजनों बहुत कम अंतर है ‌ दोनों में एक मोक्ष की दाता है और दूसरा भाव यदि यह है और क्षेत्रों में तो मैं आगे बढ़ नहीं पाया चलो इसी क्षेत्र में थोड़े आगे बढ़ते हैं । यश मान की प्राप्ति हो जाएगी । मानो आपने सारी जिंदगी की, की कराई सेवा पर पानी फेर दिया है । ऐसे लोग जो यश मान के लिए सेवा के क्षेत्र में उतरते हैं, इसलिए जो दूसरे सेवा करने वाले है यह नहीं चाहते कि वह मुंह ऊपर उठाएं, वह नहीं चाहते कि इनका सिर ऊपर उठे, इसलिए छोटे होते हुए भी यह अपने बड़ों का, अपमान कर देते हैं | क्यों, नहीं चाहते वह कहीं आगे बढ़ जाए | इसलिए, क्रोधित वाणी बोलेंगे, कठोर वाणी बोलेंगे इत्यादि इत्यादि | मानो अपना बड़प्पन सिद्ध करने के लिए, सेवा इसलिए नहीं की जाती | भक्तजनों सेवा तो इसलिए की जाती है नम्र होने के लिए, सेवक बनने के लिए । सेवा इसलिए नहीं कि आप और एरोगेंट हो जाओ और कठोर हो जाओ | मानो सेवा का आपको अभिमान हो जाए सेवा इसलिए नहीं की जाती, सेवक कहलाने के लिए सेवा नहीं की जाती | इसलिए भक्तजनों चिंता के जो अनेक कारण है हमारे जीवन में अशांति जो है चिंता के रूप में अभिव्यक्त होती है, व्याकुलता के रूप में अभिव्यक्त होती है | मुख्य कारण क्या हो सकता है अशांति का ? यूं कहा जाए स्वामी जी महाराज को किसी ने प्रश्न पूछा महाराज इस संसार में सबसे बड़ी भ्रांति क्या है ? स्वामी जी महाराज ने फरमाया भाई! जो चीज हमारे भीतर है उसको व्यक्ति बाहर लाखों करोड़ों रुपए खर्च करके बाहर मारा-मारा ढूंढ रहा है इससे बढ़कर और भ्रांति क्या हो सकती है | आप ढूंढते हो उन जगहों पर जहां अशांति के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं तो वहां शांति कैसे मिल जाएगी ? वह भीतर बैठी हुई है और आप ढूंढ रहे हो पैसे में, आप ढूंढ रहे हो विषयों में, आप ढूंढ रहे हो धन संपत्ति में, आप ढूंढ रहे हो संतान में, आप ढूंढ रहे हो ऐशो-आराम में, आप ढूंढ रहे हो यश मान में तो वहां तो शांति है ही नहीं । तो काम करो आप अशांति वाले और ढूंढना चाहो शांति तो यह कैसे संभव हो सकेगा यह संभव नहीं है | एक अबोध बच्चा मेरे जैसा इस अशांति का कारण कहे तो आप शांति के स्रोत से हट गए हो इसलिए अशांति हो गई है| आपको बिजली चाहिए तो आपको बिजली के स्रोत के साथ अपने आप को कनेक्ट करना पड़ेगा । मैं ठीक कह रहा हूं | आपको ठंडा जल चाहिए तो आपको जो ठंडे जल का चश्मा है वहां जाना पड़ेगा, ठंडे जल का कुआं है वहां जाना पड़ेगा | आपको यदि गर्म जल चाहिए तो गर्म जल का जो चश्मा है वहां जाना पड़ेगा | चाहते हो शांति पर अपने आप को जोड़ रखा है और अशांति के साथ तो यह कैसे बात बनेगी ? इसलिए भक्तजनों दास गुरुजनों की ओर से यही निवेदन आपकी सेवा में करने के लिए यहां आया है अपने आप को शांति के स्रोत से जोड़िएगा | शांति तो आप चाहते हो इसमें कोई संदेह नहीं है क्यों सब कुछ होने के बावजूद भी चिंता बनी हुई है तो मानो आप संतुष्ट तो नहीं हो । आपको कुछ और चाहिए और वह चाहिए जिसे शांति कहा जाता है, कहां से मिलेगी शांति के स्रोत के साथ जुड़ने से, कैसे जुड़ना है शांति के स्रोत के साथ | संत महात्मा कहते हैं इस युग में सुगमतम साधन है परमेश्वर के साथ जो शांति का धाम है सुख का स्रोत है उसके साथ जुड़ने का सुगमतम साधन है उसे उसके नाम से याद कीजिएगा | आपको शिव नाम पसंद है आप शिव नाम उच्चारण कीजिएगा |,

राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्री राम श्रीराम श्रीराम श्रीराम श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम 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राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय 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राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम जय जय राम जय श्री राम जय श्रीराम By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹,

**श्रीगुरु दत्तात्रेय जन्म दिवस कथा एवं कामना सिद्धि हेतु विविध साधना विशेष〰️〰️🌼〰️〰️ Vnita kasnia Punjab🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️*मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस वर्ष आज 29 दिसम्बर मंगलवार के दिन श्री दत्त महाप्रभु का जन्मोत्सव सम्पूर्ण भारत वर्ष में साधको द्वारा भक्ति भाव से मनाया जाएगा। शास्त्रानुसार इस तिथि को प्रदोषकाल में भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था।भगवान दत्तात्रेय गुरु वंश के प्रथम गुरु , साधना करने वाले और योगी थे। त्रिदेवो की शक्ति इनमे समाहित थी। शैव मत वाले इन्हे शिवजी का अवतार तो वैष्णव मत वाले इन्हे विष्णु का अवतार बताते है।अलग अलग धर्म ग्रंथो में इनकी अलग अलग पहचान बताई गयी है इन्हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सम्मिलित अवतार के रूप में बताया गया हैं। कही इन्हे ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि अत्रि और अनुसूइया का पुत्र बताया गया हैं इनके भाई चन्द्र देवता और ऋषि दुर्वासा है कही यह भी भी उल्लेख मिलता है की यह विष्णु के अंश अवतार थे इन्होने जीवन में गुरु की महत्ता को बताया है गुरु बिना न ज्ञान मिल सकता है ना ही भगवान हजारो सालो तक घोर तपस्या करके इन्होने परम ज्ञान की प्राप्ति की और वही ज्ञान अपने शिष्यों में बाँटकर इसी परम्परा को आगे बढाया।गुरु दत्तात्रेय ने हर छोटी बड़ी चीज से ज्ञान प्राप्त किया। इन्होने अपने जीवन में मुख्यत 24 गुरु बनाये जो कीट पतंग जानवर इंसान आदि थे।इनके 24 गुरु कौन-कौन हैं और व उनसे हम क्या सीख सकते हैं...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️पृथ्वी👉 सहनशीलता और परोपकार की भावना पृथ्वी से सीख सकते हैं। पृथ्वी पर लोग कई प्रकार के आघात करते हैं, कई प्रकार के उत्पात होते हैं, कई प्रकार खनन कार्य होते हैं, लेकिन पृथ्वी हर आघात को परोपकार का भावना से सहन करती है।पिंगला वेश्या👉 पिंगला नाम की वेश्या से दत्तात्रेय ने सबक लिया कि केवल पैसों के लिए जीना नहीं चाहिए। पिंगला सिर्फ पैसा पाने के लिए किसी भी पुरुष की ओर इसी नजर से देखती थी कि वह धनी है और उससे धन प्राप्त होगा। धन की कामना में वह सो नहीं पाती थी। जब एक दिन पिंगला वेश्या के मन में वैराग्य जागा तब उसे समझ आया कि पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में ही असली सुख है, तब उसे सुख की नींद आई।कबूतर👉 कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है। इनसे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा मोह दुख की वजह होता है।सूर्य👉 सूर्य से दत्तात्रेय ने सीखा कि जिस तरह एक ही होने पर भी सूर्य अलग-अलग माध्यमों से अलग-अलग दिखाई देता है। आत्मा भी एक ही है, लेकिन कई रूपों में दिखाई देती है।वायु👉 जिस प्रकार अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है। उसी तरह अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी हमें अपनी अच्छाइयों को छोड़ना नहीं चाहिए।हिरण👉 हिरण उछल-कूद, मौज-मस्ती में इतना खो जाता है कि उसे अपने आसपास शेर या अन्य किसी हिसंक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में इतना लापरवाह नहीं होना चाहिए।समुद्र👉 जीवन के उतार-चढ़ाव में भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।पतंगा👉 जिस तरह पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है। उसी प्रकार रूप-रंग के आकर्षण और झूठे मोह में उलझना नहीं चाहिए।हाथी👉 हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है। हाथी से सीखा जा सकता है कि संन्यासी और तपस्वी पुरुष को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।आकाश👉 दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, काल, परिस्थिति में लगाव से दूर रहना चाहिए।जल👉 दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।छत्ते से शहद निकालने वाला👉 मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती है और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला सारा शहद ले जाता है। इस बात से ये सीखा जा सकता है कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।मछली👉 हमें स्वाद का लोभी नहीं होना चाहिए। मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अंत में प्राण गंवा देती है। हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए, ऐसा ही भोजन करें जो सेहत के लिए अच्छा हो।कुरर पक्षी👉 कुरर पक्षी से सीखना चाहिए कि चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए। कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है, लेकिन उसे खाता नहीं है। जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को देखते हैं तो वे कुरर से उसे छिन लेते हैं। मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है।बालक👉 छोटे बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।आग👉 आग से दत्तात्रेय ने सीखा कि कैसे भी हालात हों, हमें उन हालातों में ढल जाना चाहिए। आग अलग-अलग लकड़ियों के बीच रहने के बाद भी एक जैसी ही नजर आती है। हमें भी हर हालात में एक जैसे ही रहना चाहिए।कुमारी कन्या👉 कुमारी कन्या से सीखना चाहिए कि अकेले रहकर भी काम करते रहना चाहिए और आगे बढ़ते रहना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक कुमारी कन्या देखी जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थी। बाहर मेहमान बैठे थे, जिन्हें चूड़ियों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़ियां ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी ही रहने दी। इसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया। हमें भी दूसरों को परेशान किए बिना और शांत रहकर काम करते रहना चाहिए।शरकृत या तीर बनाने वाला👉 अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। दत्तात्रेय ने एक तीर बनाने वाला देखा जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, लेकिन उसका ध्यान भंग नहीं हुआ।सांप👉 दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही, कभी भी एक स्थान पर रुककर नहीं रहना चाहिए। जगह-जगह से ज्ञान एकत्र करना चाहिए और ज्ञान बांटते रहना चाहिए।मकड़ी👉 मकड़ी से दत्तात्रेय ने सीखा कि भगवान माया जाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। जिस प्रकार मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है, ठीक इसी प्रकार भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।भृंगी कीड़ा👉 इस कीड़े से दत्तात्रेय ने सीखा कि अच्छी हो या बुरी, जहां जैसी सोच में मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है।भौंरा या मधुमक्खी👉 भौरें से दत्तात्रेय ने सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौरें और मधुमक्खी अलग-अलग फूलों से पराग ले लेती है।अजगर👉 अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए। जो मिल जाए, उसे ही खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए।श्री गुरुदत्तात्रेय की कथा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का एकरूप माना गया है। धर्म ग्रंथों के अनुसार श्री दत्तात्रेय भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। वह आजन्म ब्रह्मचारी और अवधूत रहे इसलिए वह सर्वव्यापी कहलाए। यही कारण है कि तीनों ईश्वरीय शक्तियों से समाहित भगवान दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल, सुखदायी और शीघ्र फल देने वाली मानी गई है। मन, कर्म और वाणी से की गई उनकी उपासना भक्त को हर कठिनाई से मुक्ति दिलाती है। कहा जाता है कि भगवान भोले का साक्षात् रूप दत्तात्रेय में मिलता है। जब वैदिक कर्मों का, धर्म का तथा वर्ण व्यवस्था का लोप हुआ, तब भगवान दत्तात्रेय ने सबका पुनरुद्धार किया था। हैहयराज अर्जुन ने अपनी सेवाओं से उन्हें प्रसन्न करके चार वर प्राप्त किए थे। पहला बलवान, सत्यवादी, मनस्वी, आदोषदर्शी तथा सह भुजाओं वाला बनने का, दूसरा जरायुज तथा अंडज जीवों के साथ-साथ समस्त चराचर जगत का शासन करने के सामर्थ्य का, तीसरा देवता, ऋषियों, ब्राह्मणों आदि का यजन करने तथा शत्रुओं का संहार कर पाने का और चौथा इहलोक, स्वर्गलोक और परलोक विख्यात अनुपम पुरुष के हाथों मारे जाने का। एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पतिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अहंकार नष्ट करने के लिए लीला रची। उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। तीनों देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पतिव्रत्य की परीक्षा लें। तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी और यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गईं, लेकिन फिर साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और कहा कि यदि मेरा पतिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे। तब अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तो देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। कार्तवीर्य अर्जुन (कृतवीर्य का ज्येष्ठ पुत्र) के द्वारा श्रीदत्तात्रेय ने लाखों वर्षों तक लोक कल्याण करवाया था। कृतवीर्य हैहयराज की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र अर्जुन का राज्याभिषेक होने पर गर्ग मुनि ने उनसे कहा था कि तुम्हें श्रीदत्तात्रेय का आश्रय लेना चाहिए, क्योंकि उनके रूप में विष्णु ने अवतार लिया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय गंगा स्नान के लिए आते हैं इसलिए गंगा मैया के तट पर दत्त पादुका की पूजा की जाती है। भगवान दत्तात्रेय की पूजा महाराष्ट्र में धूमधाम से की जाती है। उनको गुरु के रूप में पूजा जाता है। गुजरात के नर्मदा में भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है जहां लगातार 7 हफ्ते तक गुड़, मूंगफली का प्रसाद अर्पित करने से बेरोजगार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।दत्तात्रेय शाबर मंत्रः 〰️〰️〰️〰️〰️〰️मनोकामना सिद्धी के लिए शबर मंत्रों के उपायोग का खास महत्व है। दत्तात्रेय शाबर मंत्र इन्हीं में से एक है, जो ब्रह्मा, विष्णु समेत दत्तात्रेय का समर्पित है। इसे प्रतिदिन 108 बार जाप करने से मनोवांछित सिद्धि मिलती है तथा आत्मविश्वास में प्रबलता आती है। कार्य करने की क्षमता बढ़ती है इसे अति गोपनीय मंत्र माना गया है, लेकिन इसका कोई भी जाप कर सकता है। वह मंत्र हैः-ऊँ नमो परमब्रह्म परमात्मने नमः उत्पत्तिस्थिति प्रलयंकराये,ब्रह्म हरिहराये त्रिगुणात्मने सर्व कौतुकानी दर्शया दर्शय दत्तात्रेय नमः!मनोकामना सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा!!दत्तात्रेय सुरक्षा कवचः 〰️〰️〰️〰️〰️〰️किसी भी तरह का भय, दुर्घटना की आशंका या असुरक्षा की अज्ञात भावना को दत्तात्रेय कवच के जरिए दूर किया जा सकता है। यह एक तरह की तांत्रिक साधना है, जिसके विधिवत अनुष्ठान करने से एक अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है। जाप किया जाने वाला मंत्र हैः-ऊँ द्रां द्रां वज्र कवचाये हुं।। *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब**श्री गुरु दत्तात्रेय महाराज की जयII*जय जय श्री राधेकृष्णा*🙏🌸🌸〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️*,

गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,गुरु भगवंत गुरु मेरा देव अलख अभेव सरब पूज्य, चरण गुरु सेवू ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु बिन अवर नहीं मैं थाओ अन दिन जपो, गुर गुर नाओ ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु मेरा ग्यान, गुरु रिदे धयान गुरु गोपाल पुरख भगवान् ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु की सरन रहूँ कर जोर गुरु बिना मैं नाही होर ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु बोहित तारे भव पार गुरु सेवा ते यम छुटकार ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ अन्धकार में गुरु मन्त्र उजारा गुरु कै संग सगल निस्तारा ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु पूरा पाईये वडभागी गुरु की सेवा दुःख ना लागी ॥ गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद...॥ गुरु का सबद ना मेटे कोई गुरु नानक नानक हर सोए गुरु मेरी पूजा गुरु गोबिंद गुरु मेरा पारब्रह्म, गुरु भगवंत.,

मैं शरण पड़ा तेरी चरणों में जगह देना, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना।करूणानिधि नाम तेरा, करुन दिखलाओ तुम, सोये हुए भाग्यो को, हे नाथ जगाओ तुम। मेरी नाव भवर डोले इसे पार लगा देना, गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा।जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा॥तुम सुख के सागर हो, निर्धन के सहारे हो, इस तन में समाये हो, मुझे प्राणों से प्यारे हो। नित्त माला जपूँ तेरी, नहीं दिल से भुला देना, गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥पापी हूँ या कपटी हूँ, जैसा भी हूँ तेरा हूँ, घर बार छोड़ कर मैं जीवन से खेला हूँ। दुःख का मार हूँ मैं, मेरा दुखड़ा मिटा देना, गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥मैं सब का सेवक हूँ, तेरे चरणों का चेरा हूँ, नहीं नाथ भुलाना मुझे, इसे जग में अकेला हूँ।तेरे दर का भिखारी हूँ, मेरे दोष मिटा देना,गुरुदेव दया करके मुझको अपना लेना॥इन चरनन की पाऊं सेवा,जय गुरुदेवा, जय गुरुदेवा।,

सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।हृदय में माँ गौरी लक्ष्मी, कंठ शारदा माता है।जो भी मुख से वचन कहें, वो वचन सिद्ध हो जाता है।हैं गुरु ब्रह्मा, हैं गुरु विष्णु, हैं शंकर भगवान आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।जनम के दाता मात पिता हैं, आप करम के दाता हैं।आप मिलाते हैं ईश्वर से, आप ही भाग्य विधाता हैं।दुखिया मन को रोगी तन को, मिलता है आराम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।निर्बल को बलवान बना दो, मूर्ख को गुणवान प्रभु।देवकमल और वंसी को भी ज्ञान का दो वरदान गुरु।हे महा दानी हे महा ज्ञानी, रहूँ मैं सुबहो-शाम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।कर्ता करे ना कर सके, पर गुरु किए सब होये।सात द्वीप नौ खंड मे, मेरे गुरु से बड़ा ना कोए॥सब धरती कागज़ करूँ, लेखनी सब वनराय।समुद्र को स्याही, पर गुरु गुण लिख्यो ना जाए॥सारे तीर्थ धाम आपके चरणो में।हे गुरुदेव प्रणाम आपके चरणो में।,

दर्शन देता जाइजो जी, सतगुरु मिलता जाइजो जी। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, म्हारे पिवरिया री बातां थोड़ी म्हने,केता जाइजो जी॥सोने जेडी पीळी पड़ गई, दुनिया बतावे रोग। रोग दोग म्हारे काई नी लागे, गुरु मिलण रो जोग॥म्हारे भाभे म्हने बींद बतायो,पकड़ बताई बाँह। कांई कहो में कांई न समझू,जिव भजन रे माय॥म्हारे देश रा लोग भला है, पेहरे कंठी माला। म्हारा लागे वे भाई-भतीजा, राणाजी रा साला॥ सासरियो संसार छोडियो, पीव ही लागे प्यारो। बाई मीरा ने गिरधर मिलिया,चरण कमल लिपटायो॥

गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है, तू ही मेरी नाव का माझी, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, तू ही मेरी नाव का माझी, तू ही पतवार है, गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है।। तर्ज – थोड़ा सा प्यार हुआ है। हो अगर अच्छा माझी, नाव फिर पार होती, किसी की बीच भवर में, फिर न दरकार होती, अब तो तेरे हवाले, मेरा घर-बार है, गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है।।मैंने अब छोड़ी चिंता, तेरा जो साथ पाया, तुझको जब भी पुकारा, अपने ही पास पाया, पूरा परिवार ये मेरा, तेरा कर्जदार है, गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है।।मुझको अपनों से बढ़कर, सहारा तूने दिया है, जिंदगी भर जीने का, गुजारा तूने दिया है, मुझ पर तो गुरुवर, तेरा बड़ा उपकार है, गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है।।गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है, तू ही मेरी नाव का माझी, तू ही मेरी नाव का माझी, तू ही पतवार है, गुरूजी तेरे भरोसे मेरा परिवार है।।,

चाहे हार हो चाहे जीत हो, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, जन्म जनम से रटन लगाईं, अब तो सतगुरु बनो सहाई, चरण कमल से दूर न करना, बार बार मैं देहु दुहाई, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, किस्मत में क्या खैर नहीं है, क्या जीवन में सवेर नहीं है, देर तो हो गई दर पे तेरे है विश्वाश अंधेर नहीं है, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, दीं दयाल है नाम तुम्हारा, हम दुखियो का परम सहारा, तुमने यदि अगर फेर ली अखियां, तो यहाँ होगा कौन हमारा चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, दर तेरे के लाखो पुजारी मैं भी आया शरण तुम्हारी, तन मन धन सब वार के दाता मांगू तुमसे भक्ति तुम्हारी, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो.,

मेरे सतगुरु का दर ही मेरा असली ठिकाना है . By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,सतगुरु के चरणों में मैने जीवन बिताना है -2 मेरे सतगुरु का दर ही मेरा असली ठिकाना है . सतगुरु के चरणों में मैने जीवन बिताना है. मैने जीवन बिताना है -2 सतगुरु के चरणों में मैने जीवन बिताना है. सतगुरु की बगिया का बन कर मैं फूल रहूँ. बन कर मैं फूल रहूँ. दाता के चरणों की बन कर मैं धुल रहूँ. बन कर मैं धुल रहूँ . चरणों की धूलि को मस्तक पे लगाना है. मस्तक पे लगाना है इसे अपना बनाना है. मेरे सतगुरु का दर ही मेरा असली ठिकाना है, मेरे दाता का दर ही मेरा असली ठिकाना है . मेरे सतगुरु ने हमको जीना सिखलाया है. श्री आरती पूजा और सत्मार्ग दिखाया है. दरबार से हमको मिला ये असली खजाना है, ये असली खजाना है भक्ति का खजाना है. सतगुरु के चरणों में मैने जीवन बिताना है. दिल की हर धड़कन मैं तेरा ही नाम रहे . मुझको दिन रात प्रभु बस तेरा ध्यान रहे . इन आँखों ने केवल तेरा दर्शन पाना है. तेरा दर्शन पाना है, तेरा धयान लगाना है. इन आँखों ने केवल तेरा दर्शन पाना है . सतगुरु के चरणों में मैने जीवन बिताना है . मैं तेरी रहूँ दाता तुम मेरे कहलाओ . इस द्वारे पे खड़ी रहूँ तुम सदा नजर आओ . इस दासी ने तुझको ही बस आपना बनाया है. बस आपना बनाया है -आँखों में तेरा ही बस तेरा रूप बसाया है. मैने रूप बसाया है , चरणों की धूलि को मस्तक पे लगाना है . दरबार से हमको मिला ये भक्ति का खजाना है . भक्ति का खजाना है, कहीं और न जाना है . दाता तेरे चरणों में मैने जीवन बिताना है . मेरे सतगुरु का दर ही मेरा असली ठिकाना है . इस दासी ने तुझको ही बस आपना बनाया है . आँखों में तेरा ही बस ही तेरा रूप बसाया है.,

दया कर दान विद्या का, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, हमें परमात्मा देना, दया करना हमारी आत्मा में, शुद्धता देना।हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आँखों में बस जाओ, अँधेरे दिल में आकर के, प्रभु ज्योति जगा देना।बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर, हमें आपस में मिल-जुल के, प्रभु रहना सीखा देना।हमारा धर्म हो सेवा, हमारा कर्म हो सेवा, सदा ईमान हो सेवा, व सेवक जन बना देना।वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना, वतन पर जाँ फिदा करना, प्रभु हमको सीखा देना।दया कर दान विद्या का, हमें परमात्मा देना, दया करना हमारी आत्मा में, शुद्धता देना।,

हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें।दूसरों की जय से पहले, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, खुद को जय करें।भेदभाव अपने दिल से, साफ कर सकें।दोस्तों से भूल हो तो, माफ कर सकें।झूठ से बचे रहें, सच का दम भरें।दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।॥ हम को मन की शक्ति देना...॥मुश्किलें पड़े तो हम पे, इतना कर्म कर।साथ दे तो धर्म का, चलें तो धर्म पर।खुद पे हौसला रहे, बदी से ना डरें।दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।हम को मन की शक्ति देना, मन विजय करें।दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।,

वह शक्ति हमें दो दयानिधे, कर्त्तव्य मार्ग पर डट जावें। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,पर-सेवा पर-उपकार में हम, जग(निज) -जीवन सफल बना जावें॥ ॥वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥ हम दीन-दुखी निबलों-विकलों के सेवक बन संताप हरें। जो हैं अटके, भूले-भटके, उनको तारें खुद तर जावें॥ ॥वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥छल, दंभ-द्वेष, पाखंड-झूठ, अन्याय से निशिदिन दूर रहें। जीवन हो शुद्ध सरल अपना, शुचि प्रेम-सुधा रस बरसावें॥॥वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥निज आन-बान, मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे।जिस देश-जाति में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें॥॥वह शक्ति हमें दो दयानिधे...॥,

सब देयो बधाईयाँ नी सहेलियो नी सहेलियो, रब सतगुरु बन आया, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, ओंदा सोणा नूरी मुख सईयों, कर दर्शन लैंदी भुख सईयों ॥ ओ सबदे सुणदा दुख सईयों, ओने सब नू गल लाया, सब देयो बधाईयाँ नी ..... जेड़ा दर आवे ओ तरदा ऐ, खाली झोली सबदी भरदा ऐ ॥ओ सबदे दुखड़े हरदा ऐ, बन वाली जग दा आया, सब देयो बधाईयाँ नी.......ओंदा खुलया भंडारा रेंदा ऐ, ओनू हर कोई दाता कैंदा ऐ ॥ओ सबदे अंग संग रैंदा ऐ, ओदा भेद किसे ना पाया.सब देयो बधाईयाँ नी........आज रोशन चार चफेरा ऐ, किता जग च दूर हनेरा ऐ ॥विच ब्यासा लाया डेरा ऐ, ओ जग नू तारण आया, सब देयो बधाईयाँ नी...,

फुला वाली पालकी च मेरे गुरु जी आये ने, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, संगता ने हाथ जोड़े शीश झुकाये ने, फुला वाली पालकी च मेरे गुरु जी आये ने, सतगुरु दी वाणी वंडे चानन जहान नु, सच दा सुनेहा दिंडी हर इंसान नु, तेरे मेरे वाले सारे भरम गवाए ने, फुला वाली पालकी च मेरे गुरु जी आये ने, हर इक हिरदये अंदर जग मग हो रहियाँ, नाम दी खुमारी विच संगता ने खो रहियाँ, लोक परलोक विच खुशियां दे नजारे ने, फुला वाली पालकी च मेरे गुरु जी आये ने, गुरु दी प्यारी संगता बड़े मंदिर आ रहियाँ, कीर्तन वारा रही शब्द्द सुना रहियाँ, धन हो गए गुरु सिख जिह्ना दर्शन पाए ने, फुला वाली पालकी च मेरे गुरु जी आये ने.,

दुःख कट दुनिया दे वंड खुशियाँ खेड़े, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, मेनू प्यार करन दी दाता जांच सिखा दे, कदे वैर इरखा ना मन विच आवे, यो दूर ने तेथो आ जावन नेड़े, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, सारी दुनिया दे विच कोई गरीब न हॉवे, ना कोई एसा जिहनू रोटी नसीब न हॉवे, रहमत करी गुरु नानक मेरी, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, जिस घर छा हैनी उस घर रुख होजे, जिस घर पूत है उस घर पूत होजे, सदरा पुरियां करी गुरु मेरे, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो.,

मेरे बन जाते सब काम, जब लेता हूं तेरा नाम, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी, जब जीवन में संकट आया तुझको पाया साथ मेरे, सर पे सदा तेरा हाथ रहा, सब काम हुए छोटे या बड़े, मेरी जब जब डोली नइयाँ , तूने लिया है थाम, गुरु जी गुरु जी गुरु जी, जब भी जो भी तुझसे मांगा, खुशियों से दामन भर डाला, जीवन की अंधेरी रातों में, तूने ही दिखाया उजियाला, मेरे जब भी जले हैं पांव, तूने पल में करदी छांव, गुरु जी गुरु जी.......अब यही मांगू गुरु जी तुमसे आँखों की प्यास भुजा दो, कुछ और नहीं है चाह बस आ के मुझे दरश दिखा दो, मेरी विन ती सुनो गुरु जी आया तेरे द्वार, गुरु जी गुरु जी.,

चाहे हार हो चाहे जीत हो, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, जन्म जनम से रटन लगाईं, अब तो सतगुरु बनो सहाई, चरण कमल से दूर न करना, बार बार मैं देहु दुहाई, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, किस्मत में क्या खैर नहीं है, क्या जीवन में सवेर नहीं है, देर तो हो गई दर पे तेरे है विश्वाश अंधेर नहीं है, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, दीं दयाल है नाम तुम्हारा, हम दुखियो का परम सहारा, तुमने यदि अगर फेर ली अखियां, तो यहाँ होगा कौन हमारा चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो, दर तेरे के लाखो पुजारी मैं भी आया शरण तुम्हारी, तन मन धन सब वार के दाता मांगू तुमसे भक्ति तुम्हारी, चाहे हार हो चाहे जीत हो, तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो.,

आप के दर पे जो आ गेया, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,सब मुरादे वो ही पा गया, आप के दर पे जो आ गेया सारी रचना को तू ही रचे, इस लिए तेरे दर आ गया, आप के दर पे जो आ गेया मेरी नजरो में तेरा ही खुमार, आज सजदा अदा हो गया, आप के दर पे जो आ गेया, मांगे के जरूरत नहीं, देता है उसको जो भा गया, आप के दर पे जो आ गेया सारी दुनिया उसे मिल गई, तेरे चरणों में जो आ गया, आप के दर पे जो आ गेया.,

दर्शन करिये सब सुख पाइये, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, गुरु जी दा नाम धिआइये, प्रथम गुरु न सिमरिये गुरा न अंग संग पाइये, चरना नाल प्रीत वदाईये, गुरु जी दा नाम धिआइये, अरदास मेरी सुन दातिया मेरे दिल दी जानन वालेया, तेरी किरपा सदा ही पाइये, गुरु जी दा नाम धिआइये, तेरी सिफ़्ता करदे रहिये तेरे गुण सदा ही गाइये, एहना नैना विच तनु वसाइये, गुरु जी दा नाम धिआइये, संगत दी सुंदे पुकार झोलियाँ भर दे भारम भार एह, दर्शन करिये सब सुख पाइये, गुरु जी दा नाम धिआइये.,

मेरे गुरां ने लगाई फुलवारी के पत्ता पत्ता राम बोलदा, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,आके देखो गुरु जी इक वारी पत्ता पत्ता राम बोलदा, सुने सुने मन साडे हरे भरे हो गये, नाम वाला बीज जदो सतगुरु जी बो गये. माला माल हो गयी ऐ भिलनी की पत्ता पत्ता राम बोलदा, सतगुरु मेरिया ज्ञान सिखाया, मुक्त्ति दा राह सानू आप दिखया, सदा नाम जपन नर नारी पत्ता पत्ता राम बोलदा, ज्ञान वाली अख साड़ी ,गुरु जी हूण खोल दो , दिल दिया तारा साडी , राम नाल जोड़ दो , सदा चढ़ी रहे खुमारी ,पत्ता पत्ता राम बोलदा.,

गुरूजी तेरा प्यार, मेरा आधार, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,यह जीवन बीते तेरे चरना नाल। प्रेम दी डोरी कदे ना तोड़ीं, चित्त चरना दे नाल ही जोड़ी। तेरी यह दासी करे पुकार, यह जीवन बीते तेरे चरना नाल॥ बड़ा सुख पाया, तेरे दर आके, करां तेरी सेवा, मन चित्त ला के। तेरी यह दासी पड़ी तेरे द्वार, यह जीवन बीते तेरे चरना नाल॥ ज्ञान दा दीपक जले दर तेरे, होवे उजयारा मन विच्च मेरे। तेरी यह दासी करे पुकार, यह जीवन बीते तेरे चरना नाल॥नमो नमो गुरुदेव, सतगुरु नमो नमो नमो नमो गुरुदेव, सतगुरु नमो नमो.,

दर्शन दो गुरु जी मेरी अखियां प्यासी रे, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब मेरी अखियां प्यासी रे, मंदिर मंदिर मूरत तेरी फिर भी न दिखे सूरत तेरी, युग बीते न आयी मिलन की पूरनमाशी रे, दर्शन दो गुरु जी मेरी अखियां प्यासी रे, पानी पी कर प्यास भुजाओ नैन को कैसे समजाऊ, आँख मचोली छोड़ो अब तो मन की बाती रे, दर्शन दो गुरु जी मेरी अखियां प्यासी रे, मेरी अखियां प्यासी रे.,

जप गुरु जी का गुरु जी का नाम भगत, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,तेरे बिगड़े बने गे काम भगत, गुरु शरण में तू शरणागत हो, गुरु किरपा से तू करुणा बस हो, ये गुरु का करुणा धाम भगत, जप गुरु जी का गुरु जी का नाम भगत हो चिंता मुकत गुरु पास तेरे, ये विफल नहीं प्रयास तेरे, गुरु साथ तेरे सुबहो शाम भगत, जप गुरु जी का गुरु जी का नाम भगत गुरु करुणा दया का सागर है, तेरे दुःख सुख में वो हाज़िर है, योगी मन से कर परनाम भगत, जप गुरु जी का गुरु जी का नाम भगत.,

दिन चड़ेया नी आज सोहना, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,भागा वाला दिन आज आया, गुरु दर्शन आज पाया, क्यों न खुशिया मनावा मैं गीत खुशिया दे गावा मैं, लाख शुकार मनावा मैं जिह्ना वेहड़े बने लाया है, सोना सजाया गुरु दा द्वार, प्यारा लगदा गुरुआ दा दीदार, कितना प्यारा है ऊँचा गुरुआ दा दावरा है, घडी भागा वाली आई है, संगता नु वधाई है, मुँह मंगिया मुरदा पौंदे ने सवाली जेहड़े दर आउंदे ने.,

मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, कैसे तारो गे गुरु जी कैसे तारो गे, मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे, राम नाम मैं रट न सक्या सत्संग भी मैं कर न सक्या, ऐसी है तकदीर गुरु जी कैसे तारो गे, मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे, दान पूण मैं कर ना पाया, ना कोई तीरथ नहा के आया, पापो की तस्वीर प्रभु की कैसे तारो गे, मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे, ना कोई पूजा पाठ समाधि जन्म जन्म का हु अपराधी, मेरी दलिया खीर प्रभु जी कैसे तारो गे, मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे, गुरु शरण में जो भी आवे, सोही अमित जीवन फल पावे, कह गये संत कबीर प्रभु जी कैसे तारो गे, मेरा अवगुण भरया शरीर गुरु जी मुझे कैसे तारो गे.,

तेरे आने की जब खबर महके, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,तेरी खुशबू से सारा घर महके, शाम महके तेरे तसवुल से, शाम के बाद फिर सेहर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, रात भर सोचता रहा तुझको, ज़ह्नु दिल में रात बर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, याद आये तो दिल मुनावर हो, दीद हो जाये तो नजर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, वो घडी दो घड़ी याहा बैठी, वो ज़मीन महकी वो सजर महकी, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके.,

साहनु दर ते भुलाया है खुशिया दा चन चड़ेया बेडा पार लगाया है, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी, गुरूजी दे रूप विच वेखि है खुदाई वे, गल नाल लाके हुन पाई न जुदाई वे, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी साडा मान वदाया है, चरनी लगा के गुरु जी, अरशा च पोहंचाया है , गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी पलका विशाई आसी रावा विच तेरी, दूर करो हुन मेरे दुख दे हनेरे, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी. साहनु दुगरी भुलाया है, संगता दा प्यार देके अखियां च वस्य है, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी. अखियां च हंजू मेरे साँझ सवेरे, किस दर जावा छड़ चरना नु तेरे, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी, कदी सादे घर आओ गुरु जी, रुखा सूखा जो बनया ओहदा भोग लगाओ गुरु जी, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी. हाथ जोड़ करिये तेरा शुकराना, रेहमता दा गुरु जी ने दिता नजराना, गुरु जी गुरु जी गुरु जी गुरु जी.,

अनंद भया मेरी माए सतगुरू मैं पाईया। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, सतगुर त पाया सहज सेती मन वजीया वधाईया। राग रतन परवार परीआ सबद गावण आया। शबदो त गावहु हरि केरा मन जिनी वसाईया॥ कहै नानक अनंद होआ सतगुरू मैं पाया॥ ऐ मन मेरया तू सदा रहु हरनाल॥ हर नाल रहु तु मन मेरे दुख सभ विसारणा। अंगीकार उह करे तेरा कारज सभ सवारणा॥ सभना गला समरथ स्वामी सौ क्यूँ मनहु विसारे॥ कहै नानक मन मेरे सदा रहु हरनाल॥ साचे साहबा क्या नहीं घर तेरे ॥ घर त तेरे सभ किछ है जिसदेहेसुपावे॥ सदा सिफत सलाह तेरी नाम मन वसावै॥ नाम जिन कै मन वसया वाजे सबद घनेरे॥ कहै नानक सचे साहब क्या नाहीं घर तेरै॥ साचा नाम मेरा आधारे॥ साच नाम अधार मेरा जिन भुखा सभ गवाईया॥ कर शांत सुख मन आए वसया जिन इच्छा सभ पुजाया॥सदा कुरबान किता गुरू विटहु जिस दिया एही वडिआईया।कहै नानक सुनहु संतहु सबद धरहु प्यारे॥साचा नाम मेरा आधारो॥वाजे पंच सबद तितु घर सभारै॥घर सभारै सबद वाजे कलाजित घर धारया॥पंचदूत तूध वस किते काल कंटक मारया॥धुर करम पाया तुध जिन कउ सिनाम हर कै लागे।कहै नानक तह मुख होआ तित घर अनहद वाजे॥अनंद सुनहु वडभागिहो सगल मनोरथ पूरे॥पारब्रहम प्रभ पाया उतरे सगल विसुरे॥दुख रोग संताप उतरे सुणी सच्ची वाणी॥संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी॥ सुणते पूणित कहते पवित सतगुरू रहया भरपूरे॥बिणवंत नानक गुर चरण लागै वाजे अनहद तूरे॥,

तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,तूँ जाने तेरा काम जाने तू जाने तेरा काम जाने, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, फूलों में रख, चाहे कांटे चुभो दे किनारे लगा दे, चाहे नईया डुबो दे मौज़ हैं प्रभु, यह तुम्हारी, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, सतगुरु प्यारे मुझे, शरण में रखना दया की दृष्टि, हम पर भी रखना छोड़ आया रे, जग सारा, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो तुम्ही हो बँधु, सखा तुम्ही हो तुम्ही हो, पालनहारी, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, दीन बँधु, दीनो के नाथ मेरी डोरी, तेरे हाथ रखियो, लाज हमारी, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, अपनी शरण, बुला लोगे तुम मंज़िल तक, पहूँचा दोगे तुम करते हैं, आस तुम्हारी, तूँ जाने तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी, जबसे तेरी, शरण में आया एक अनोखा, आनंद पाया मिट गई, चिंता सारी, तूँ जाने, तेरा काम जाने तेरे भरोसे मेरी, मंज़िल तक, पहुंचाओगे तुम भव से पार, कराओगे तुम करेंगे, मौज़ सवारी, तूँ जाने तेरो काम जाने तेरे भरोसे मेरी गाड़ी.,

लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, बड़ियाँ ही जग तो छुपाइयाँ अखियां, सोहने सोहने माहि दा दीदार जदो किता, सड़े कोलो भी न गइयाँ लुकाइयाँ अँखियाँ, लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां, अखियां ने पहला माहि सुपने च तकियाँ, एहो जेहा तकिया मैनु मार सुतिया, सोने दिया आखा विच नहियो वेखना केहन्दियाँ सी मैनु मेरी अँखियाँ, सोहने सोहने माहि दा दीदार जदो किता, सड़े कोलो भी न गइयाँ लुकाइयाँ अँखियाँ, लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां, अखा अखा विच माहि गला समझा इया ने, कॉल साहनु रख के एशा भी करवाइए ने, नच नच माहि न मैं फिर तो मनावा गी, झांजरा भी मैं साम्ब साम्ब राखियां, सोहने सोहने माहि दा दीदार जदो किता, सड़े कोलो भी न गइयाँ लुकाइयाँ अँखियाँ, लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां, दिल दिया सद्र न पूरियां करवाओ जी, सादे होके साहनु तू अपना बनावो जी, तूद्दे बिना पूछियां ना किसे ने आके, सोहने सोहने माहि दा दीदार जदो किता, सड़े कोलो भी न गइयाँ लुकाइयाँ अँखियाँ, लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां, किस देश जावे योगी दुखड़े सुनावे जी, दिल वाले जखमा नु किस नु दिखावे जी, ठंढियां हवावा दी की आस रखिये, तुहाडे वंगु चल दा न कोई पखियाँ, सोहने सोहने माहि दा दीदार जदो किता, सड़े कोलो भी न गइयाँ लुकाइयाँ अँखियाँ, लाइयाँ अखियां जी लाइयाँ अखियां.,

वे रब्बा तनु इक वारि मिलना जरूर है, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, यार कॉल बह के तनु तकना जरूर है, तू है सोहना या सड़ा यार है सोहना, शक दिल विचो कड़ना जरूर है, वे रब्बा तनु इक वारि मिलना जरूर है, तू खबरे किस शहर च वसदा, घर तेरे दा कोई रस्ता न दसदा, सजना ने तेरा वारे दसया जरूर है, तू है सोहना या सड़ा यार है सोहना, शक दिल विचो कड़ना जरूर है, वे रब्बा तनु इक वारि मिलना जरूर है, यार मेरे दी आँख मस्तानी होइ फिरदी दुनिया दीवानी, अखा तेरिया दे विचो तकना जरूर है, तू है सोहना या सड़ा यार है सोहना, शक दिल विचो कड़ना जरूर है, वे रब्बा तनु इक वारि मिलना जरूर है, हॉवे गा तू दुनिया ले सोहना यार मेरे जेहा रूप न होना, दिलदार मेरे दा योगी बखरा सुरु है, तू है सोहना या सड़ा यार है सोहना, शक दिल विचो कड़ना जरूर है, वे रब्बा तनु इक वारि मिलना जरूर है.,

तेरे आने की जब खबर महके, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, तेरी खुशबू से सारा घर महके, शाम महके तेरे तसवुल से, शाम के बाद फिर सेहर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, रात भर सोचता रहा तुझको, ज़ह्नु दिल में रात बर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, याद आये तो दिल मुनावर हो, दीद हो जाये तो नजर महके, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके, वो घडी दो घड़ी याहा बैठी, वो ज़मीन महकी वो सजर महकी, तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके.,

दुःख कट दुनिया दे वंड खुशियाँ खेड़े, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, मेनू प्यार करन दी दाता जांच सिखा दे, कदे वैर इरखा ना मन विच आवे, यो दूर ने तेथो आ जावन नेड़े, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, सारी दुनिया दे विच कोई गरीब न हॉवे, ना कोई एसा जिहनू रोटी नसीब न हॉवे, रहमत करी गुरु नानक मेरी, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो, जिस घर छा हैनी उस घर रुख होजे, जिस घर पूत है उस घर पूत होजे, सदरा पुरियां करी गुरु मेरे, अरदास मालका चरना विच तेरे जपो.,

जिथे दर्शन हॉवे तेरा सोइ वेला धन गुरु जी, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, मूक जाए चौरासी दा गेड़ा सही वेला धन गुरु जी, जिथे दर्शन हॉवे तेरा सोइ वेला धन गुरु जी, ओ जाने ओहदो सफलिया घड़ियाँ दर्शन तेरा हॉवे, सच्चे पातशाह देख दिया मल जन्म जन्म धु है, मैनु आपदा बड़ा लू गुला सोइ वेला धन गुरु जी, इको नजर मेहर दी करके जी मोह लिया मन मेरा, अखियां मेरियाँ चैन न पावन कहना न मनन मेरा, तेरे बिना है जीवन दोहरा सोइ वेला धन गुरु जी, लखा स्वर्ग मूल ना भाये जदो दर्शन होया तेरा, साद साद वैकुण्ठ दिस पेया किता सदा वसेरा, मैं हां तेरा मैं हां तेरा तेरा सोइ वेला धन गुरु जी.,

हो आ गया जगत दा वाली मेहरा दा वेखो मीह वसया, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,जिहने हर लई चिंता सारी मेहरा दा वेखो मीह वसया आया जगत दा पालनहार सबसे सीहदा किता उधार, जिहने हर लाई चिंता सारी मेहरा दा वेखो मीह वसया नजर मेहर दी जिसते करदे,जनमा दे दुखड़े पल विच हरदे, जीवे हर लाई चिंता सारी मेहरा दा वेखो मीह वसया, तू सुल्तान ऐसी मंगते तेरे आन डिगे गुरु जी दर ते तेरे, किवे हर लई चिंता सारी मेहरा दा वेखो मीह वसया सबदे रक्शक सब दे वाले,भर दिति तू सी झोली खाली, हो आ गया जगत दा वाली मेहरा दा वेखो मीह वसया.,

धुन वजदी नाम दी धुन वजदी, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब,मेरे मन मंदिर विच गुरु जी दे नाम दी धुन वजदी, धुन वजदी ते केहन्दी गुरु जी मैं तेरे बिना किस कम दी, सोहना एह शरीर बनाके अंदर बैठे आसान लगा के, जद किता दीदार तेरा दिसे मैनु सूरत रब दी, मेरे मन मंदिर विच गुरु जी दे नाम दी धुन वजदी, करा अरदास मैं ता चरना च तेरे खुशिया होवण सब दे वेहड़े, हर पास ही सुख बरसे करदो किरपा मेरे गुरु जी, मेरे मन मंदिर विच गुरु जी दे नाम दी धुन वजदी, सिमृति दास मेरी झोली विच पाया जी, नाम जपना मैनु अपना बनौना जी, रखो चरना दे विच गुरु जी दासी हां मैं तेरे दर दी, मेरे मन मंदिर विच गुरु जी दे नाम दी धुन वजदी.,

अनंद भया मेरी माए सतगुरू मैं पाईया। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, सतगुर त पाया सहज सेती मन वजीया वधाईया। राग रतन परवार परीआ सबद गावण आया। शबदो त गावहु हरि केरा मन जिनी वसाईया॥ कहै नानक अनंद होआ सतगुरू मैं पाया॥ ऐ मन मेरया तू सदा रहु हरनाल॥ हर नाल रहु तु मन मेरे दुख सभ विसारणा। अंगीकार उह करे तेरा कारज सभ सवारणा॥ सभना गला समरथ स्वामी सौ क्यूँ मनहु विसारे॥ कहै नानक मन मेरे सदा रहु हरनाल॥ साचे साहबा क्या नहीं घर तेरे ॥ घर त तेरे सभ किछ है जिसदेहेसुपावे॥ सदा सिफत सलाह तेरी नाम मन वसावै॥ नाम जिन कै मन वसया वाजे सबद घनेरे॥ कहै नानक सचे साहब क्या नाहीं घर तेरै॥ साचा नाम मेरा आधारे॥ साच नाम अधार मेरा जिन भुखा सभ गवाईया॥ कर शांत सुख मन आए वसया जिन इच्छा सभ पुजाया॥सदा कुरबान किता गुरू विटहु जिस दिया एही वडिआईया।कहै नानक सुनहु संतहु सबद धरहु प्यारे॥साचा नाम मेरा आधारो॥वाजे पंच सबद तितु घर सभारै॥घर सभारै सबद वाजे कलाजित घर धारया॥पंचदूत तूध वस किते काल कंटक मारया॥धुर करम पाया तुध जिन कउ सिनाम हर कै लागे।कहै नानक तह मुख होआ तित घर अनहद वाजे॥अनंद सुनहु वडभागिहो सगल मनोरथ पूरे॥पारब्रहम प्रभ पाया उतरे सगल विसुरे॥दुख रोग संताप उतरे सुणी सच्ची वाणी॥संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी॥ सुणते पूणित कहते पवित सतगुरू रहया भरपूरे॥बिणवंत नानक गुर चरण लागै वाजे अनहद तूरे॥,